नहाय-खाय के साथ कल से शुरू होगा चार दिवसीय सूर्यापासना का महापर्व ‘छठ’

कतरास : शुक्रवार से लोग छठ का चार दिवसीय त्योहार मनाएंगे, जिसे महापर्व छठ भी कहा जाता है. आस्था का महापर्व छठ पूजा को लेकर तालाबों व घाटों की मरम्मत व साफ-सफाई का काम लगभग पूरा हो चुका है. इसके साथ ही घाटों को सजाने का कार्य भी सुरु किया जायगा. महापर्व छठ सूर्य देव को समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है. भारत के बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में लोग इस चार दिवसीय त्योहार को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाते हैं. जिनमें से प्रत्येक का अपना अनूठा महत्व है.

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, लोग कार्तिक महीने के दौरान त्योहार मनाते हैं, जो अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है. इस बार महापर्व छठ 17 नवंबर से शुरू होगा और 20 नवंबर को समाप्त होगा. छठ के पहले दिन, जो चतुर्थी तिथि है, लोग अनुष्ठान करते हैं ‘नहाय खाय’ के बाद दूसरे दिन खरना होता है,

जो पंचमी तिथि को पड़ता है. षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य सूर्य को दिया जाता है और छठ का अंतिम दिन, सप्तमी तिथि, सुबह आयोजित उषा अर्घ्य समारोह के साथ समाप्त होती है, जो छठ पूजा उत्सव के अंत का प्रतीक है. इस त्योहार के दौरान, भक्त नदी में पवित्र स्नान करना, उपवास करना और सूर्य देव को प्रार्थना करना सहित विभिन्न अनुष्ठान करते हैं. माना जाता है कि छठ पूजा से सूर्य देव को प्रसन्न करने और समृद्ध जीवन के लिए उनका आशीर्वाद लेने का एक बेहद शुभ समय है.

छठ पर्व की मान्यता

आचार्य शिवम शुक्ला बताते हैं कि यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है. यह व्रत बहुत कठिन है. व्रत को कड़े नियमों का पालन करते हुए 36 घंटे तक रखा जाता है. इस व्रत को करने से महिलाओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानी चतुर्थी से नहाय-खाय के साथ शुरू होता है और सप्तमी तिथि को समाप्त होता है. आचार्य शिवम शुक्ला बताते हैं कि भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण ने स्वयं द्रौपदी को कठोर व्रत रखने को कहा था. द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान से छठी मैया की पूजा करके यह कठिन व्रत किया था और इसी व्रत के कारण पांडवों को राजपाठ मिला था. इस पर्व में मुख्य रूप से माली सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है.

जानें, छठ पूजा के प्रत्येक दिन का महत्व

छठ पूजा के पहला दिन

छठ पूजा के पहले दिन में, जिसे नहाय खाय के नाम से जाना जाता है, भक्त पास की घाट, तालाब व नदी या झील में डुबकी लगाते हैं. और खीर और रोटी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं. लोग त्योहार की शुरुआत से पहले अपने मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने के लिए यह अनुष्ठान करते हैं.

छठ पूजा का दूसरा दिन

छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि भक्त सख्त उपवास रखते हैं. वे पूजा-अर्चना करने और खीर, फल और पूड़ी जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ तैयार करने के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं. मानना है कि यह अनुष्ठान उनकी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है और समृद्धि और सौभाग्य लाता है.

छठ के तीसरा दिन

छठ पूजा के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है, यह महा पर्व छठ का सबसे महत्वपूर्ण दिन है. भक्त डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फल, फूल और दीये चढ़ाते हैं. मान्यता है कि यह अनुष्ठान परिवार में खुशी, सफलता और अच्छा स्वास्थ्य लाता है.

छठ के चौथा दिन

छठ पूजा के अंतिम व चौथे दिन, जिसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है, भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं. यह अनुष्ठान त्योहार के अंत का प्रतीक है, और भक्त प्रार्थना करने के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं. मान्यता है कि इस अनुष्ठान से परिवार में शांति और सद्भाव आता है.

Related posts