एमजीएम अस्पताल में उड़ रही है नियमों की धज्जियां

14 वर्षीय नाबालिक से उठवाए जा रहे हैं मरीजों के झूठे बर्तन

3 माह से जेना इंटरप्राइजेज एजेंसी के अंतर्गत है कार्यरत, अस्पताल प्रबंधन की आंखों पर बंधी है पट्टी

कालीचरण

जमशेदपुर : केंद्र और राज्य सरकार द्वारा हमेशा से ही बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संकल्प लिया जाता आ रहा है। साथ ही इनके लिए कई योजनाएं भी चल रही है। बावजूद इसके आज भी गरीब परिवारों की बेटी की स्थिति जस की तरफ बनी हुई है। वे पढ़ लिख कर आगे तो बढ़ना चाहती है। मगर परिवार के आर्थिक स्थिति के कारण नाबालिक उम्र में ही काम करने को मजबूर हो जाती है। ऐसा ही एक मामला एमजीएम अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में शुक्रवार की दोपहर देखने को मिला। जहां सिदगोड़ा बाबूडीह निवासी महज 14 वर्षीय नाबालिक रीता गागराई मरीजों के झूठे बर्तन उठाते हुए दिखाई पड़ी। यह दृश्य अपने आप में बहुत कुछ बयां कर रहा था। मासूम सी दिखने वाली रीता मरीजों के बेड के नीचे से झूठे बर्तन उठाकर एकत्र करती हुई दिखाई पड़ी। इस दौरान उसके चेहरे पर सीकन तो थी। मगर मजबूरी उसे सामने आने नहीं दे रही थी। वहीं जब मौके पर हमने उससे बातचीत की तो उसने बताया कि उसका जन्म 25 दिसंबर 2009 को हुआ था। उसने पढ़ाई भी की है। मगर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के कारण उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। जिसके बाद परिवार की स्थिति को सुधारने के लिए बीते तीन माह से वह अस्पताल में कार्यरत जेना इंटरप्राइजेज ठेका एजेंसी के अंतर्गत काम कर रही है। जिसके एवज में उसे 5500 रुपए वेतन दिया जाता है। मगर बहुत ताज्जुब की बात है कि इतने दिनों से काम कर रही नाबालिक पर अस्पताल प्रबंधन की नजर नहीं पड़ी। ठेका एजेंसी जेना एंटरप्राइजेज द्वारा खुलेआम नियमों को धज्जियां उड़ाई जा रही है। मगर यह सब देखने के लिए अस्पताल प्रबंधन के पास समय ही नहीं है। नियमों को ताक पर रखकर एजेंसी सिर्फ नाबालिक से काम ही नहीं करवा रही है। बल्कि नाबालिगों के लिए बनाए गए श्रम कानून के नियमों को भी तोड़ रही है। मगर इसे देखने की फुर्सत किसी के पास नहीं है। नाबालिक से काम कराकर एजेंसी उसका वाजिब अधिकार भी उसे नहीं दे रही है। यह सब कुछ खुलेआम हो रहा है। मगर अस्पताल प्रबंधन ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है और जिसके कारण उसे यह सब दिखाई नहीं पड़ रहा है। या फिर यूं कहे कि अस्पताल प्रबंधन यह सब कुछ देखना ही नहीं चाहती है। और तो और एक सरकारी संस्थान में ही नियमों को तार-तार किया जा रहा है। मगर इसकी फिक्र किसे है। इसके जिम्मेवार कौन है। अस्पताल में यह देखने की जिम्मेदारी किसकी है। क्या तीन माह से काम कर रही नाबालिक पर किसी की नजर नहीं पड़ी? ऐसे कई सवाल है जिसका जवाब जिम्मेदारों को देना चाहिए। सूबे के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता तो अस्पताल के सुधार में पूरी तरह लगे हुए हैं। मगर क्या ऐसे में अस्पताल का सुधार हो पाना मुमकिन है। वहीं अस्पताल अधीक्षक डॉ रविंद्र कुमार ने मामले को शनिवार देखने की बात कह कर फोन रख दिया। जबकि हमने मामले को लेकर एसडीएम सह अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी पीयूष सिन्हा से भी बात करने की कोशिश की। मगर उन्होंने व्यस्तता के कारण फोन नहीं उठाया।

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