जमशेदपुर : बहरागोड़ा प्रखंड स्थित खेतों में धान की कटनी शुरू होते ही शनिवार किसानों को पराली जलाते हुए देखा गया। जिसके कारण आस-पास के क्षेत्रों में तेजी से प्रदूषण फैल रहा है। बताया जा रहा है कि पहले किसान अपनी फसल खुद काटते थें। साथ ही फसल का थोड़ा हिस्सा खेतों में ही रहता था और इसे जलाने की जरुरत भी नहीं पड़ती थी।
मगर बीते कुछ सालों से धान की फसल की कटाई मशीनों से किसानों द्वारा कराई जा रही है। इस दौरान मशीन फसल का सिर्फ ऊपरी हिस्सा ही काटती है और बाकी का हिस्सा जमीन में ही रहता है। जो अधिक मात्रा में बच जाता है। बताते चलें कि किसानों के पास दूसरी फसल की बुआई करने के लिए कम समय रहता है। इसलिए किसान पराली को वे काटने के बजाय खेतों में ही जला रहे हैं। प्रत्येक साल अक्टूबर और नवम्बर माह में पराली जलाई जाती है। जिससे रबी की फसलें समय पर बोई जा सकें। इसी कारण किसान फसल कटने के बाद बचे हुए पराली को किसान जल्दबाजी में जला देते हैं। जिससे क्षेत्र में प्रदूषण फैल रहा है। पराली जलने से निकलने वाले धुएं से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो रही है।
जबकि दूसरी ओर वैज्ञानिकों की मानें तो पराली की राख से खेतों की मिट्टी में पाया जाने वाले राइजोबिया नामक बैक्टीरिया पर काफी असर भी पड़ता है। इसी बैक्टीरिया द्वारा नाइट्रोजन जमीन तक पहुंचता है और जिससे पैदावार क्षमता बढ़ती है। मगर पराली जलाने से मिट्टी को हुए नुकसान से फसलों की पैदावार भी कम हो जाती है। वहीं खेत में पराली जलाना भारतीय दंड संहिता की धारा 188 आईपीसी के तहत गैरकानूनी माना गया है। जिसमें दोषी पाए जाने पर इसके तहत 6 माह कारावास या फिर 15 हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है। मगर किसानों में कृषि जागरूकता की कमी और जिला प्रशासन के सुस्त रवैये के कारण पराली जलाने का सिलसिला लगातार जारी है। जिसके कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।