कतरास: झारखंड की अधिकांश भूमि कठोर चट्टानों से बनी है, इस कारण जल संसाधन मे भूमिगत जल का योगदान बहुत ही कम है। सालाना बारिश 1400 एम एम का करीब 80% हिस्सा विभिन्न नदी बेसिन के रास्ते बंगाल की खाड़ी में चली जाती है और झारखंड में अच्छी बर्षा के बाबजूद, खराब जल प्रबंधन के कारण राज्य का 75% क्षेत्र सूखे की चपेट में आ जाता है।
राज्य के उत्तर की नदी बेसिन सीधे या अपरोक्ष रूप से गंगा नदी में मिलती है, जिसमें उत्तरी कोयल बेसिन, पुनपुन बेसिन, सोन – कान्हार बेसिन, मयूराक्षी बेसिन, अजय बेसिन, बराकर बेसिन, दामोदर बेसिन तथा उत्तर पूर्व में एक छोटा हिस्सा गंगा नदी भी सामिल है साहेबगंज में।
राज्य के दक्षिण की नदियां सीधे या अपरोक्ष रूप से बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है, जिसमें शंख बेसिन, दक्षिणी कोयल बेसिन, खरकयी बेसिन और स्वर्ण रेखा बेसिन सीधे बंगाल की खाड़ी से मिलती है। दक्षिण बहाव वाली शंख और कोयल बेसिन संगम कर ब्रह्माणी नदी के रुप में महानदी बेसिन का हिस्सा बन जाती है।
झारखंड की पहचान जल, जंगल और जमीन से है। जल से ही जंगल और जमीन की भी उपयोगिता है, लेकिन सर्फेस जल के बर्बाद हो जाने से राज्य को हमेशा जल संकट झेलना पड़ता है।
1951 में पानी की बार्षिक प्रति व्यक्ति उपलब्धता में 5177 क्यूबिक मीटर थी जो घटकर 2019 में 1720 क्यूबिक मीटर रह गई है और एशिया विकास बैंक का आंकड़ा तो यह भी बताता है कि राज्य में 2030 तक जल की 50% तक की कमी हो जाएगी।
राज्य सरकार के लिए यह अति चिंताजनक विषय है और इसके लिए सरकार को अभी दूरगामी योजना पर काम शुरू करना होगा ताकि राज्य जल की एक एक बूंद के लिए नहीं तरसे।
इस लिए राज्य सरकार जल्द एक (हालिस्टिक) सर्वांगीण जल नीति बना कर काम शुरू करे ताकि भविष्य में इसे राज्य सरकार ताकत बना सकती है।
कुल सोलह नदियां बेसिन हैं, इसमें से पांच नदी बेसिन स्वर्ण रेखा, दामोदर, बराकर,कोयल और गुमानी से जल प्रबंधन कर पेयजल व सिंचाई के अलावा मछली पालन, बिजली उत्पादन, पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने जैसे काम किए जा सकते हैं। जल संरक्षण का काम एवं जल प्रबंधन का कार्य के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर लाना होगा जो जल को रोकने के लिए, पानी को पंप आउट करने लिए, परिष्कृत करने के लिए स्थाई आधार भूत संरचना तैयार करना होगा, वह भी इमानदार प्रयास एवं तकनीकी की मदद से।
झारखंड सरकार इन पांच नदी बेसिन पर काम करने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनबाए, वित्तीय खर्च एवं उसे होने वाले फायदे का विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर के टाइम बाउन्ड प्रोग्राम लेकर काम शुरू करवाए, तब ही राज्य जल संकट से निजात पा सकता है।