सरकार के सचिव और जिले के डीसी को हाईकोर्ट के अधिवक्ता से प्रार्थी ने भेजवाया लीगल नोटिस, मांगा जवाब
जमशेदपुर : टाटा स्टील कंपनी लिमिटेड द्वारा झारखंड सरकार को अब भी लगभग 60 अरब रुपए देना बकाया है। बावजूद इसके तीसरी बार कंपनी सरकार से लीज नवीनीकरण के लिए जुगत लगा रही है। ऐसा हम नहीं कह रहे। बल्कि रांची हाईकोर्ट से प्रार्थी पलामू मेदिनी नगर मुस्लिम नगर निवासी अख्तर जमा ने अपने अधिवक्ता नेहरू महतो द्वारा झारखंड सरकार रिवेन्यू एंड लैंड रिफॉर्म्स विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी और जिले के डीसी को भेजे गए लीगल नोटिस में कहा है। नोटिस में उन्होंने कहा है कि 12708.59 एकड़ भूमि टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) को संयुक्त बिहार राज्य द्वारा 40 वर्षों की अवधि के लिए साल 1956 से 31.12.1995 तक लीजिए पर दी गई थी। जिसमें अनुसूची 1 (उत्पादन प्रक्रिया) के लिए 744.16 एकड़, अनुसूची 2 (आवासीय सुविधाएं) के लिए 1418.94 एकड़, अनुसूची 3 (सिविल सुविधाएं) के लिए 2235.39 एकड़, अनुसूची 4 (उप लीज) के लिए 4301.75 एकड़ और अनुसूची 5 (खाली भूमि) के लिए 4008.35 एकड़ भूमि लीज दी गई थी। जिसकी अवधि 31.12.1995 को समाप्त हो गई। मगर इससे पहले ही टिस्को प्राधिकरण ने 03.08.1995 को 10992.51 एकड़ भूमि लीज नवीकरण के लिए आवेदन किया। जिसमें पुराने लीज क्षेत्र में कुछ संशोधन के साथ 30 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिए 1.1.1996 से लीज नवीकरण प्रस्तावित था। जिसमें अनुसूची 1 में 990.48 एकड़, अनुसूची 2 में 1686.89 एकड़, अनुसूची 3 में 2254.60 एकड़, अनुसूची 4 में 4030.24 एकड़ और अनुसूची 5 में 2030.30 एकड़ भूमि शामिल थी। वहीं पुरानी लीज के तहत टिस्को के पक्ष में लीज पर दी गई भूमि का किराया 200 रुपए/50 रुपए और 14.10 रुपए प्रति एकड़ निर्धारित किया गया था। जो लीज के पक्षों द्वारा तय किया गया और राज्य को देय था। उक्त लीज के तहत नवीनीकरण प्रावधान थे और जिसमें राज्य को नवीनीकरण के समय किराया संशोधित करने का अधिकार था। वहीं लीज नवीनीकरण के उद्देश्य से पूर्वी सिंहभूम जिला के डीसी द्वारा उचित जांच कर 10313.29 एकड़ भूमि के लिए उनके द्वारा सिफारिश की गई। जिसमें अनुसूची 1 में 987.60 एकड़, अनुसूची 2 में 1686.89 एकड़, अनुसूची 3 में 2205.98 एकड़, अनुसूची 4 में 4018.35 एकड़ और अनुसूची 5 में 1414.47 एकड़ भूमि शामिल थी। मगर 24.07.2001 को कैबिनेट के निर्णय के अनुसार 59 अरब 37 करोड़ 43 लाख 59 हजार 464 रुपए और 40 पैसे की बकाया राशि का मूल्यांकन झारखंड सरकार द्वारा किया गया। जब टिस्को (टाटा स्टील) के पक्ष में लीज नवीनीकरण पर विचार किया गया। जिसका विवरण कैबिनेट के 24.07.2001 के निर्णय और सरकार द्वारा प्रकाशित डेटा में देखा भी जा सकता है। वहीं राज्य सरकार की असंतोषजनक कारवाई से असंतुष्ट होकर टिस्को ने कुछ रिट याचिकाएं समेत अन्य मामले जैसे सीडब्ल्यूजेसी संख्या – 3157/97 (आर), एलपीए संख्या – 594/97 (आर), 265/1999 (आर), सीडब्ल्यूजेसी संख्या – 1742/99 (आर), एमजेसी संख्या – 609/1999 और अवमानना सीवी संख्या – 274/2002 दायर किया। वहीं पहले पट्टे के नवीनीकरण की कार्रवाई संयुक्त बिहार राज्य द्वारा की जा रही थी। लेकिन झारखंड राज्य के बिहार पुनर्गठन अधिनियम के तहत बनने के बाद पट्टे के नवीनीकरण की फाईल झारखंड राज्य द्वारा प्राप्त की गई थी। वहीं 24.08.2002 को एक बैठक आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता मंत्री ने की। उक्त बैठक में अधिक संशोधित किराए पर केवल अनुसूची 1, 2 और 3 के संबंध में पट्टे का नवीनीकरण करने का निर्णय लिया गया। उक्त निर्णय को अवमानना मामले ( सीवी) संख्या – 274/2002 में आवश्यक कार्रवाई के लिए झारखंड हाईकोर्ट के विद्वान महाधिवक्ता को सूचित किया गया। साथ ही टिस्को द्वारा नियमों और शर्तों के उल्लंघन के संबंध में विद्वान महाधिवक्ता से राय भी मांगी गई। जिसपर उन्होंने अपनी राय दी कि उक्त उल्लंघन और कंपनी के दायित्व के संबंध में कारण बताओ नोटिस जारी करने और कंपनी को अवसर देने के बाद उचित निर्णय लिया जा सकता है। यहां इसका उल्लेख करना प्रासंगिक है कि माननीय हाईकोर्ट ने उक्त अवमानना मामले में राज्य को अनुसूची 4 और 5 भूमि के संबंध में नियमों और शर्तों के उल्लंघन के कारण देय राशि की गणना करने का निर्देश भी दिया था। उक्त निर्देश के अनुसरण में अनुसूची 4 और 5 भूमि के संबंध में नियमों और शर्तों के उल्लंघन के कारण टिस्को द्वारा राज्य के राजकोष में देय राशि 1 अरब 36 करोड़ 53 लाख 57 हजार 547 रूपए 60 पैसे और 1 अरब 70 करोड़ 55 लाख 91 हजार 780 रुपए 02 पैसे का आंकलन राज्य के अधिकारियों द्वारा किया गया था और अनुसूची 4 भूमि के संबंध में राज्य सरकार द्वारा एक आदेश पारित किया गया था कि एक महीने की अवधि के भीतर टिस्को से स्पष्ट जानकारी मांगी जाय। जिस तरीके से टिस्को अगले 10 वर्षों में अनुसूची 5 भूमि का उपयोग करना चाहता है और इसके उपयोग के लिए कंपनी द्वारा कितनी राशि का निवेश किया जाएगा, विफल रहने पर अनुसूची 5 भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए कारवाई की जा सकती है। वहीं अनुसूची 4 और 5 भूमि के संबंध में राज्य सरकार द्वारा किए गए उक्त आंकलन के खिलाफ आपत्तियां दर्ज की और टिस्को की आपत्तियों पर सुनवाई के बाद माननीय हाईकोर्ट ने एक आदेश पारित किया और आंकलन की गई राशि 1 अरब 36 करोड़ 53 लाख 57 हजार 547 रूपए 60 पैसे से घटाकर 1 अरब 10 करोड़ 75 लाख 32 हजार 031 रुपए 48 पैसे कर दी गई और अनुसूची 5 के संबंध में यह आदेश दिया गया कि चुंकि सीईएसएस के संबंध में विभिन्न न्यायालयों के समक्ष कई मामले लंबित हैं। इसलिए सीईएसएस के भुगतान के संचालन को स्थगित रखा जाय। वहीं 1 अरब 10 करोड़ 75 लाख 32 हजार 031 रुपए 48 पैसे राशि के उक्त आंकलन के खिलाफ भी टिस्को ने माननीय हाईकोर्ट के समक्ष डब्ल्यू पी (सी) संख्या – 5260/04 के तहत एक रिट याचिका दायर की। लेकिन इसे डिफॉल्ट के कारण खारिज कर दिया गया। जिसके खिलाफ टिस्को द्वारा सीएमपी संख्या – 413/2005 के तहत एक बहाली आवेदन दायर किया गया था और उसे भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद विद्वान महाधिवक्ता की राय के आधार पर देय राशि की मांग की तारीख से अंतरिम ब्याज की गणना की गई और उक्त गणना पर शुद्ध देय राशि 75 करोड़ 55 लाख 29 हजार 376 रुपए 48 पैसे आंकी गई। वहीं पट्टे के नवीकरण को अंतिम रूप देने के दौरान 86 गांवों को हटाने के संबंध में डीसी से प्रस्ताव मांगा गया था और उन्हें अनुसूची 5 से रैयती भूमि हटाने का निर्देश भी दिया गया था और जो प्रस्तावित पट्टे में गलत तरीके से शामिल थे। वहीं पट्टे के नवीकरण के प्रायोजन के लिए 18.07.2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक बैठक भी आयोजित की गई। जिसमें वित्त मंत्री और मंत्री राजस्व एवं भूमि सुधार, महाधिवक्ता, राजस्व सचिव, संभागीय आयुक्त सिंहभूम कोल्हान प्रमंडल , डीसी पूर्वी सिंहभूम, टिस्को के एमडी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव समेत टिस्को के अन्य पदाधिकारी भी शामिल थे। इस बैठक में टिस्को प्रबंधन ने अनुसूची के संबंध में नियमों और शर्तों के उल्लंघन के लिए 75 करोड़ 55 लाख 29 हजार 376 रुपए 48 पैसे के किराए के आंकलन के खिलाफ आपत्तियां उठाई। साथ ही कंपनी द्वारा आरोप लगाया गया कि उक्त किराया कानून के अनुसार नहीं है। अनुसूची 4 और 5 के उल्लंघन के लिए देय राशि उप पट्टे के लाभार्थियों से वसूल की जानी चाहिए। बैठक में कंपनी ने सुझाव दिया कि अनुसूची 4 और 5 भूमि के लिए आंकी गई राशि भुगतान के संबंध में विवाद को पुराने औधोगिक परिवार को बढ़ावा देने के लिए अदालत के बाहर सुलझाया जाना आवश्यक है। जबकि उस बैठक में प्रबंधन ने सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए 25 करोड़ रुपए प्रीमियम की लागत वहन करने का वादा किया और आगे प्रबंधन ने राष्ट्रीय खेल 2007 में वित्तिय व्यय वहन करने का आश्वासन भी दिया। साथ ही प्रबंधन ने प्रस्तावित पट्टे की अनुसूची 5 से 86 गांवों को हटाने के लिए सहमत भी हुआ। इसी तरह प्रबंधन राष्ट्रीय खेलों के बुनियादी ढ़ांचे के निमार्ण के लिए 150 करोड़ रुपए की राशि प्रदान करने के लिए भी सहमत हुआ। जिसके बाद बैठक में नियमों और शर्तों के अनुसार नवीनीकृत करने का निर्णय लिया गया। जिसमें पट्टा 1.1.1996 से 30 वर्षों के लिए नवीनीकृत किया जाएगा। टिस्को प्रबंधन राष्ट्रीय खेलों के बुनियादी ढ़ांचे के लिए 150 करोड़ रुपए की लागत वहन करेगा। टिस्को प्रबंधन गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य बीमा योजना के प्रीमियम के लिए प्रति वर्ष 25 करोड़ रुपए की लागत वहन करेगा। प्रस्तावित पट्टे की अनुसूची 4 से 86 गांवों को हटा दिया जाएगा और प्रबंधन उक्त गांवों के रैयतों को सुविधाएं जारी रखेगी। गलत तरीके से शामिल रैयती भूमि को पट्टे से हटा दिया जाएगा। निर्धारित देयताएं यानी अनुसूची 4 और 5 भूमि के संबंध में नियमों और शर्तों के उल्लंघन के लिए आंकी गई राशि लाभार्थियों से वसूल की जाएगी। पट्टा नवीकरण के संबंध में माननीय हाईकोर्ट के समक्ष लंबित मामला प्रबंधन द्वारा वापस ले लिया जाएगा। उक्त निर्णय और मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुशरण में पट्टा तैयार करने का निर्णय लिया गया और इसे 15.08.2005 तक अनुमोदित करवा लिया जाय। तदनुसार एक समिति गठित की गई। जिसमें संभागीय आयुक्त सिंहभूम, डीसी पूर्वी सिंहभूम, आदित्यपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण के प्रबंध निदेशक और टिस्को के प्रबंध निदेशक शामिल थे। ताकि पट्टा विलेख का मसौदा तैयार किया जा सके। उक्त समिति ने दो बार की सीमा तक संशोधित किराए की दर पर पट्टा नवीकरण विलेख तैयार किया और अंततः नवीकरण के लिए मसौदा पट्टा विलेख 19.03.2005 को मंत्रिमंडल से अनुमोदित करवाया गया। साथ ही विभागीय आदेश संख्या 2776 दिनांक 19.08.2005 के तहत झारखंड के महालेखाकार को पट्टे के नवीकरण के बारे में सूचित भी किया गया। वहीं पट्टा विलेख पर झारखंड सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए मुख्य सचिव द्वारा एक भाग में और टिस्को प्रबंधन द्वारा दूसरे भाग में 20.08.2005 को हस्ताक्षर किए गए। साथ ही पट्टा विलेख में उल्लेखित नियमों और शर्तों के तहत 01.01.1996 से टिस्को के पक्ष में 30 वर्षों के लिए पट्टे का नवीकरण किया गया। नवीकरण पट्टा विलेख के तहत अनुसूची 1,2,3,4 और 5 को परिशिष्ट ए, बी, सी, डी और ई के रुप में नाम दिया गया। नये पट्टा विलेख के तहत किराए दर के अनुसार ए – 400 रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष, बी – 100 रुपए, सी – 2 रुपए, डी – उसी दर पर जो पट्टे को उप पट्टेदार से प्राप्त होती है, और ई – 28.20 रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष तय किया गया था। यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि टिस्को के पक्ष में पट्टे के नवीकरण से पहले अधिकारियों ने राज्य के राजकोष में देय बकाया और देनदारियों का आंकलन 59 अरब 37 करोड़ 43 लाख 59 हजार 464 रुपए और 40 पैसे के रूप में पिछले किराए के बकाए और पट्टा समझौते के नियमों और शर्तों के उल्लंघन के कारण हुए नुकसान के लिए किया था। वहीं सरकार और पट्टेदार के बीच अदालत में लंबित मुकदमों में विवाद को सुलझाने के दौरान अंततः टिस्को के खिलाफ देयता का आंकलन केवल अनुसूची 4 भूमि के उल्लंघन के संबंध में 75 करोड़ 55 लाख 29 हजार 376 रुपए 48 पैसे के रूप में किया गया था। वहीं मुख्यमंत्री के निर्णय में भी इसे लाभार्थियों से वसूल करने का निर्णय लिया गया था। लेकिन नवीनीकृत पट्टा विलेख दिनांक 20.08.2005 को पिछले किराए के बकाए और देनदारियों यानी 59 अरब 37 करोड़ 43 लाख 59 हजार 464 रुपए और 40 पैसे, जो सरकारी खजाने में देय है, की वसूली के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है। वहीं 18.07.2005 को अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णय जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी शामिल थे। पट्टा विलेख नवीकरण की जांच से पता चलता है कि राज्य के अधिकारियों ने जानबूझकर टिस्को के खिलाफ पिछले बकाए के बारे में चुप्पी साध ली है। अधिकारियों द्वारा आंकी गई किराए की पिछली बकाया राशि की वसूली के लिए कोई उपाय नहीं करने की बात कही है। टिस्को के पक्ष में अनुचित लाभ दिया गया है। राज्य के अधिकारियों, जो लोक सेवक हैं, ने अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन न कर सरकारी राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया है। अंत में प्रार्थी अख्तर जमा के अधिवक्ता नेहरू महतो द्वारा दी गई नोटिस में कहा है कि टिस्को द्वारा अब भी बकाया राशि नहीं दी गई है और जो सरकारी खजाने में देय सार्वजनिक धन है। जानकारी के अनुसार झारखंड राज्य के तत्कालीन प्रथम राजस्व मंत्री स्व. मधु सिंह के कारण ही यह मामला प्रकाश में आया था। उनके रहते सरकार चाह कर भी इस मामले को मैनेज नहीं कर पा रहे थे। इनका कहना था कि इतनी भारी भरकम राशि दिए बगैर टिस्को द्वारा नई नवीकरण नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा द्वारा पूर्व कैबिनेट से पारित प्रस्ताव को जिसमें कहा गया था कि बगैर बकाया वसूले टिस्को का लीज नवीकरण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि कि टिस्को लोहा का नहीं जमीन का व्यापार कर रहा है। जिसके तहत लाफार्ज सीमेंट समेत अन्य कंपनियों को सैकड़ों एकड़ लीज भूमि नियमों का उल्लघंन कर टिस्को द्वारा बेच दी गई। वर्ष 2005 में किए गए नये लीज नवीकरण पट्टा में कहीं भी पूर्व लिए गए नियमों और शर्तों का जिक्र तक नहीं है।