क्यों सीआरपीएफ की 134वीं बटालियन सारंडा होगी शिफ्ट, 12 वर्ष से हैं कार्यरत

पलामू : पलामू जिले में लंबे समय से कार्यरत सीआरपीएफ की 134वीं बटालियन को क्लोज करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। इस बटालियन को नक्सल प्रभावित इलाके पश्चिमी सिंहभूम के सारंडा में शिफ्ट किया जायेगा। इस सिलसिले में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने निर्णय लिया है। पलामू जिले में पिछले 12 वर्ष से सीआरपीएफ की 134वीं बटालियन कार्यरत हैं। पलामू को करीब करीब नक्सल गतिविधियों से शांत करने में इस बटालियन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पलामू में कार्यरत सीआरपीएफ 134वीं बटालियन की एसआरइ (स्पेशल रिजन एक्सपेंडिचर) फंड रोक दी है। साथ ही इस जिले से इस बटालियन को सारंडा भेजने का निर्णय लिया है। यह भी जानकारी मिली है कि चाइबासा के सारंडा के जिस इलाके में इस कंपनी को शिफ्ट किया जायेगा, वहां के लिए जमीन भी मिल गयी है। इसका मुख्यालय वहीं बनाया जायेगा। सारंडा में कार्यरत सीआरपीएफ की 7वीं बटालियन क्लोज हो रही है। उसे दूसरे इलाके में शिफ्ट किया जायेगा।

सबसे पहले 13वीं बटालियन का हुआ था पदार्पण

पलामू जिले में वर्ष 1995-96 से सीआरपीएफ की तैनाती रही है। सबसे पहले सीआरपीएफ की कंपनी वर्ष 1995-96 में यहां हुआ करती थी। लेकिन 2000 के बाद 13वीं बटालियन का पदार्पण यहां हुआ। करीब 10 से 12 वर्ष तक 13वीं बटालियन यहां रही। इसके बाद 134वीं बटालियन का आगमन हुआ। दोनों बटालियन ने मिलकर नक्सलियों से जमकर लोहा लिया। सीआरपीएफ जवानों के अदम्य साहस का ही परिणाम है कि इस जिले से प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की गतिविधियां कम हुई हैं।

पुलिस के लिए होगी चुनौती
पलामू जिले से सीआरपीएफ को शिफ्ट करने पर पुलिस के लिए चुनौती साबित होगी। ज्यादातर नक्सल गतिविधियों को लेकर अभियान में सीआरपीएफ के जवान शामिल रहे हैं। ऐसे में अगर सीआरपीएफ इस जिले से जाती है तो अभियान को लेकर पुलिस के समक्ष चुनौती आयेगी। जिला पुलिस का कार्य दायित्व काफी है। विधि व्यवस्था संधारण के साथ साथ छोटे उग्रवादी संगठनों और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई भी करनी पड़ती है। ऐसे में अगर भाकपा माओवादी की गतिविधि इस जिले में दोबारा से बढ़ी तो कार्रवाई करने में समस्या आयेगी।

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