शिक्षा: एक संत के दो शिष्य उनसे मिलने जा रहे थे।
पूरे दिन का सफर था। चलते-चलते रास्ते में
एक नदी पड़ी। उन्होंने देखा कि उस नदी में
एक स्त्री डूब रही है।
शिष्य के लिए स्त्री का स्पर्श वर्जित माना जाता है।
ऐसी दशा में क्या हो?
उन दोनों शिष्यों में से एक ने कहा-
“हमें धर्म की मर्यादा का पालन करना चाहिए।
स्त्री डूब रही है तो डूबे! हमें क्या!”
लेकिन दूसरा शिष्य अत्यंत दयावान था।
उसने कहा- “हमारे रहते कोई इस तरह मरे यह तो मैं सहन नहीं कर सकता।” इतना कहकर वह पानी में कूद पड़ा डूबती स्त्री को पकड़ लिया और कंधे का सहारा देकर किनारे पर ले आया।
दूसरे शिष्य ने उसकी बड़ी भर्त्सना की,
रास्ते भर वह कहता रहा कि-
“मैं जाकर गुरु जी से कहूंगा कि आज इसने मर्यादा का उल्लंघन करके कितना बड़ा पाप किया है।
दोनों संत के सामने पहुंचे तो…………….
दूसरे शिष्य ने एक सांस में सारी बातें कह सुनाईं-
“गुरुवर! मैंने इसको बहुतेरा रोका, पर यह माना ही नहीं। बड़ा भयंकर पाप किया है इसने।
संत ने उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी, फिर पूछा-
“इस शिष्य को उस स्त्री को कंधे पर बाहर लाने में
कितना समय लगा होगा?
कम-से-कम पंद्रह मिनट तो लग ही गए होंगे।
अच्छा!
संत ने फिर पूछा-
“इस घटना के बाद यहां आने में तुम लोगों को
कितना समय लगा?
शिष्य ने हिसाब लगाकर उत्तर दिया-
“यही कोई छ: घंटे!”
संत ने कहा- “भले आदमी!
इस बेचारे ने तो उस स्त्री की प्राण रक्षा के लिए
उसे सिर्फ पंद्रह मिनट ही अपने कंधे पर रखा
लेकिन तू तो उसे छ: घंटे से अपने मन में बिठाए हुए है, वह भी इसलिए कि मुझसे इसकी शिकायत कर सके।
बोल दोनों में बड़ा पापी कौन है?
बेचारा शिष्य निरुत्तर हो गया।
वह समझ गया कि पाप सिर्फ शरीर से ही नही
मन से भी होता है।
इसलिए मनुष्य बड़ा पापी मन से होता है।