कद्दू वर्गीय फसल में अच्छे उत्पादन के लिए आवश्यक है कीट- रोग प्रबंधन -कनीय पौधा संरक्षण पदाधिकारी

गिरिडीह:- कनीय पौधा संरक्षण पदाधिकारी आकाश सिंहा ने कद्दू वर्गीय फसल में कीट- रोग प्रबंधन पर जानकारी देते हुए कहा कि वर्तमान में कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती प्रदेश में की जा रही है। इन सब्जियों में मुख्य रूप से करैला, लौकी, नेनुआ, ककड़ी, खीरा, कोहड़ा, टिंडा, तरबूज इत्यादि आते हैं। कीटों तथा रोगों से इनका उत्पादन प्रभावित होता है इसलिए आवश्यक है कि किसान ससमय नियंत्रण विधि को उपयोग अच्छी फसल प्राप्त करें। इस वर्ग की सब्जियों में लगने वाले प्रमुख कीट व रोग तथा उनका प्रबंधन निम्न हैं।

 

लालभृंग:- नियंत्रण – फसल की अगेती बुवाई से कीट के प्रकोप से बचा जा सकता है। लाल संतरी रंग के व्यस्क भृंग को सुबह के समय इकट्ठा करके नष्ट कर दें। मेलाथियान 50 ईसी अथवा डाइमेथोएट 30 ईसी का 500 मिली प्रति हेक्टेयर के दर से छिड़काव करें। भूमिगत शिशुओं (ग्रब) के नियंत्रण हेतु क्लोरोपिरिफोस 20 ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर हल्की सिंचाई के साथ इस्तेमाल करें। गर्मी में गहरी जुताई करें।

फलमक्खी:- नियंत्रण – इसके नियंत्रण हेतु रात के समय खेत में प्रकाश पाश लगाएं तथा नर व्यस्कों को फेरोमेन ट्रैप लगाकर नियंत्रित करें। कीट की निगरानी हेतु फसल में गंधपाश 2 प्रति एकड़ जमीन आवश्यकतानुसार लगाएं।‌ अक्रांत एवं टूटकर गिरे हुए फलों को इकट्ठा कर गहरे गड्ढे में दबा दें। फलमक्खी के प्रकोप को रोकने के लिए मैलाथियाॅन ईसी 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। अगर फलमक्खी का प्रकोप सतत हो तो 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव दोहराएं। फसल काटने के बाद खेत की गहरी जुताई करके इनकी अवयस्क अवस्था (प्युपा) का नियंत्रण किया जा सकता है।

 

उख्टा रोग:- नियंत्रण:- इस रोग की रोकथाम कठिन है क्योंकि इस रोग के जीवाणु संक्रमित पौधा अवशेष पर मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं इसलिए गैर कद्दू वर्गीय फसल से तीन-चार साल का फसल चक्रीकरण अपनाना चाहिए। रोग ग्रस्त पौधा अवशेषों को हटा कर खेत से दूर मिट्टी में दबा दें। कृषि ग्रेड चूना द्वारा मिट्टी का पीएच 6-6.5 तक बनाए रखें, ट्राईकोडर्मा से मिट्टी उपचारित करें। रोग रहित बीजों एवं पौधों को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लगाएं। रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं। मौसम में आर्द्रता या बरसात होने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी को 2 ग्राम / लीटर पानी की दर से ड्रेचिंग (पौधों के आस-पास की मिट्टी को भिगाना) या ड्रिप के माध्यम से दें।

प्रोपिकोनाजोल , ट्युबकोनाजोल या थ्योफेनेट मिथाइल युक्त फफुंदनाशी को ड्रेचिंग या ड्रिप के माध्यम से 10 दिनों के अंतराल पर देने से नियंत्रण पाया गया है।

 

मृदुरोमिल आसिता (तुलासिता रोग) नियंत्रण:- रोग रोधी किस्मों की बुवाई करें। फसल पकने के बाद फसल अवशेषों को जला दें। खड़ी फसल पर मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत की दर से छिड़काव करें।

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