3 दिसंबर डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर विशेष

प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का हजारीबाग से रहा है विशेष लगाव

संजय सागर

बड़कागांव : वैसे तो आजादी की लड़ाई के दिनों में हजारीबाग, बड़कागांव, केरेडारी, टंडवा, चतरा, मांडू रामगढ़ की धरती लुलुहान हो गया था. भारत को आजाद करने में हजारीबाग का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद आजादी की लड़ाई के दौरान हजारीबाग से गहरा लगाव रहा है.हजारीबाग एवं रामगढ़ में दौरा करते रहे. उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर हजारीबाग के केंद्रीय कारागार में तीन बार बंदी बनाकर रखा था. 11 जनवरी 1932 से 24 जून 1932 तक तथा दूसरी बार 22 जनवरी 1933 से 07 सितंबर 1933 तक हजारीबाग केंद्रीय कारा में डॉ राजेंद्र प्रसाद को बंदी बनाकर रखा गया था. तीसरी बार 28 जनवरी 1944 से 01 दिसंबर 1944 तक लगातार ग्यारह महीने तक जेल की सजा काट कर बाहर निकले थे. राजेंद्र प्रसाद अपनी पुस्तक आत्मकथा में हजारीबाग, रामगढ़, बड़कागांव के बारे में उल्लेख किया. इस पुस्तक में उन्होंने अपनी जेल जीवन की विस्तृत चर्चा की है. तथा लिखा भी है कि अपने मित्रों की शिकायत दूर करने के लिए यह तर्क देते थे कि उन्होंने छोटानागपुर की अनदेखी नहीं की है, बल्कि जीवन का अधिकांश समय हजारीबाग में ही बिताया है.

जेल में उनका अधिकांश समय अध्ययन, सूत कातने तथा राजनीति चर्चाओं में बीता था. खान अब्दुल गफ्फार खां, राहुल सांकृत्यायन, महामाया प्रसाद सिंह, केबी सहाय, बाबू रामनारायण सिंह, जगत नारायण लाल, स्वामी सहजानंद सरस्वती समेत कई नेता देशरत्‍‌न के साथ जेल में बंद थे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व आनंदित साव, प्रयाग रविदास, प्रकाल रविदास, पारस महतो ने भी किया था. इसके अलावा हजारीबाग के कलेक्ट्रेट पर तिरंगा झंडा फहराने वाले स्वतंत्रता सेनानी केदार सिंह, सुधीर मलिक, कस्तूरी मल अग्रवाल, सीताराम अग्रवाल, चेत लाल तेली, रामदयाल साव, कांशी राम मुंडा थे. रामगढ़ अधिवेशन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद का सहयोगी, बड़कागांव प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से सूबेदार सिंह, चेता मांझी, लखी मांझी, ठाकुर मांझी, खैरा मांझी, बड़कू मांझी, छोटका मांझी, गुर्जर महतो भी थे .

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