चुनावी चकलस

 

हमसे क्या भूल हुई, यह जो सजा हमको मिली…

 

बड़कागांव : विधानसभा चुनाव की नशा नेताओं में तो छाया ही है अब मतदाताओं में भी जाने लगा है .पान गुमटी हो या चाय की दुकान हो या फिर सरकारी, गैर सरकारी कार्यालय हो .हर जगह चुनाव की चर्चा होने लगी है. एक बूढ़े बाबा ने चाय की चुस्की लेते हुए कहते हैं

कुर्सी की माया, गजब है रे भाया! क्या-क्या न पापड़ बेलवाती है कुर्सी .पूछिए मत. कुर्सी के लिए अपने सिद्धांत को कुछ नेता लोग भूलने लगे हैं . टिकट नहीं मिलने के कारण दूसरे दलों में जाने लगे हैं. इसी में एक नेताजी चाय की चुस्की लेते हुए कहते कि मैं काफी दिनों से मैं गम में हूं भैया . हमसे से क्या भूल हुई है,जो सजा हमको मिली… अब तो चारों तरफ बंद है दुनिया की गली… मैं कई वर्षों तक पार्टी का सेवा करता रहा पर मुझे टिकट नहीं मिला. मैं करूं तो करूं क्या ?दूसरे दल में जाऊं या अपने दल में रहूं . तभी एक युवक ने कहा नेताजी आप इस चाय दुकान में चाय पीने आए हैं,यहां चाय नहीं मिलेगा तो दूसरा दुकान में चाय जरूर पीजिएगा .इसलिए दूसरे दल में आप भी चले जाइए.

तभी एक क्षेत्रीय दल का नेताजी पहुंचते हैं और कहते हैं मुझे टिकट नहीं मिला ,लेकिन मैं दूसरे दल में जा रहा हूं .और मैं वहां से टिकट लेकर विधायक बनकर टिकट नहीं देने वाले पार्टी को सबक सिखाऊंगा. तभी एक राष्ट्रीय दल के नेताजी कहते हैं कि मैं अपने पार्टी को शुरू से सीचने का काम किया.लोग मुझे पार्टी का जड़ कहते हैं .लेकिन मैं जड़ ही बनकर रहा गया. जड़ कभी ऊपर नहीं चढ़ पाया.

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