गढ़वा: भवनाथपुर विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प होता दिख रहा है, जहां इंडिया और एनडीए गठबंधन के सामने बसपा और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। बीजेपी अपनी हैट्रिक बनाने के प्रयास में अपने अनुभवी नेता, पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही को एनडीए के प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार चुकी है, जबकि नगर उंटारी गढ़ परिवार के अनंत प्रताप देव झामुमो के इंडिया गठबंधन से अपनी मजबूती पेश कर रहे हैं। हालांकि, 2019 के चुनाव में बसपा का दूसरे स्थान पर रहना यह दर्शाता है कि युपी के सीमा पर स्थित भवनाथपुर में बसपा का हांथी पर असरदार रहा है।इस बार चुनावी समीकरणों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। भवनाथपुर प्रखंड के भवनाथपुर, खरौंधी, और केतार इलाके परंपरागत रूप से बीजेपी के लिए मजबूत माने जाते रहे हैं, लेकिन इस क्षेत्र से पंकज चौबे (बसपा) और उमेंद्र यादव (समाजवादी पार्टी) का मैदान में उतरना जातीय समीकरणों को पूरी तरह से बदल रहा है। पंकज चौबे दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को साधने की कोशिश में हैं, जबकि उमेंद्र यादव अपने समुदाय का समर्थन पाने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं। इस जातीय विभाजन का असर एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के पारंपरिक वोट बैंक पर साफ दिखाई दे रहा है।इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अनंत प्रताप देव की ताहिर अंसारी के साथ दोस्ती ने एक नया एंगल जोड़ा है, जो हिंदू-मुस्लिम संबंधों के नजरिये से लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे हिंदू मतदाता बीजेपी की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जबकि मुस्लिम मतदाताओं में इंडिया गठबंधन की स्वीकार्यता बढ़ सकती है। यह समीकरण धार्मिक ध्रुवीकरण को और भी अधिक प्रभावित कर सकता है, जिससे एनडीए को भी वोटों का फायदा हो सकता है।भानु प्रताप शाही और अनंत प्रताप देव दोनों के सामने जातीय और धार्मिक विभाजनों को देखते हुए रणनीतियों में बदलाव की चुनौती है। शाही बीजेपी की नीतियों और विकास योजनाओं के सहारे जीत की कोशिश करेंगे, जबकि अनंत प्रताप देव आदिवासी और किसान हितैषी छवि का फायदा उठाकर ग्रामीण और आदिवासी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेंगे। हालांकि, बसपा और सपा जैसे छोटे दलों की बढ़ती भूमिका इन दोनों दलों के समीकरणों को अप्रत्याशित दिशा में ले जा सकती है।भवनाथपुर विधानसभा सीट पर एनडीए और इंडिया गठबंधन का मुकाबला जातीय, धार्मिक, और क्षेत्रीय समीकरणों के उलझन भरे समीकरणों से घिरा है। पंकज चौबे और उमेंद्र यादव जैसे उम्मीदवार जातीय वोटों को बांटते हुए प्रमुख गठबंधनों की जीत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, अनंत प्रताप देव की ताहिर अंसारी के साथ दोस्ती के धार्मिक पहलू ने इस चुनाव को और भी रोमांचक बना दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या बीजेपी अपनी हैट्रिक बना पाती है, या जातीय और धार्मिक समीकरणों के बदलते रुझान इसे अप्रत्याशित दिशा में मोड़ते हैं।