शिक्षकों की भारी कमी के मद्देनजर स्थानीय युवतियों को दिया जाए स्कूलों में अध्यापन का अवसर

मंईया सम्मान में पैसा व्यर्थ खर्च न कर हो इसका सदुपयोग

मो. ओबैदुल्लाह शम्सी

गिरिडीह:- झारखण्ड की सबल माताओं एवं बहनों को बैठे- बिठाए मुफ्त में प्रत्येक महीना 2500 रू देकर उन्हें आलसी एवं निर्बल बनाने से कहीं बेहतर है उन्हें छोटे-छोटे रोजगार देकर स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनाना।
आज जब राज्य में बेरोजगारी चरम पर है और हर विभाग में मैन पावर की घोर कमी है। योग्य पेंशनर्स के पेंशन लंबित हैं। जिन्हें सच में पैसों की आवश्यकता है उन्हें पैसा मिल नही पा रहा है और लगभग 55 से 60 लाख शारीरिक रूप से सक्षम महिलाओं को हर महीने मंईया सम्मान के नाम पर मुफ्त में 2500 रू दिए जा रहे हैं।

प्रदेश के अमूमन सभी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी है। हजारों की संख्या में एक शिक्षकीय विद्यालय संचालित हो रहे हैं। मध्य एवं उच्च विद्यालय भी 1 शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। अन्य विद्यालयों में विषयवार शिक्षकों की घोर कमी है।

क्या ऐसे में राज्य सरकार का यह उत्तरदायित्व नहीं होना चाहिए कि वो स्कूलों में स्थानीय शिक्षित बेरोजगार युवतियों को अनुबंध के तहत 3 से 5 हजार रुपए मासिक वेतन पर बहाल करके स्कूलों के लगातार गिरते हुए शिक्षा के स्तर में सुधार करे।

इससे राज्य की बहु-बेटियों को जहां रोजगार मिलेगा वहीं उनके स्वावलंबन के क्षेत्र में भी यह मील का पत्थर साबित होगा और इससे स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी को भी बहुत हद तक पाटा जा सकेगा।

अब सरकार स्वयं फैसला करे कि प्रत्येक माह मंईया सम्मान योजना के तहत 2500 रू दिया जाना सही है या मंईंयाओं को रोजगार देकर उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करना सही है?

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