संजय सागर
बड़कागॉव : बड़कागॉव में बसंत की विदाई बेला चूनर ओढ़े सरसों के खेत और बागों में कोयल की कूक. ऐसे मद मस्त माहौल में जब फाग का राग कानों में मिठास घोलता है तो तो बहारों की मादकता कई गुना बढ़ जाती है.गांव में अपनी लोक संस्कृति की छटा निराली होती है। अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए पुरुष व महिलाएं होली के एक पखवाड़े पहले से ही फाग गाना शुरू कर देते हैं .गांव में ये परंपरा अभी भी जीवंत है. होली के उपलक्ष में एक पखवारे पूर्व ही शाम होते ही लोक गायक अपनी रागिनी के सूर छेड़ देते हैं.
वहीं युवा पूरे जोश से देर रात तक होली गीतों का आनंद लेते रहते हैं. तो महिलाएं अपने घरों में एकत्र होकर होली के गीतों से उसका स्वागत करती हैं.
नव विवाहिताएं जिनके पति परदेस कमाने गए हैं. वह विरह की आग में जलती हुई होली गीत गाकर उनके आगमन की प्रतीक्षा करती है. जिनके पिया रूठ गए हैं वह उन्हें मनाने के लिए मनुहार गीत गाती है. नई नवेली अपने पिया की याद में कहती है-
अबकी होली पिया लै चलौ संग मरूगै तोरे गुलाल, अब ना मैं बारी रही, उमरिया हो गई अट्ठारह साल. वही प्रेयसी कहती है कि-डालने अइहौ होली के बहाने , दोनों होंगे रंगीन सुन दीवाने। सुबह गांव के होली पं.चन्द्र प्रकाश मिश्र कहते हैं हम अपनी गायकी में जहां लोक संस्कृति का ध्यान रखते हैं.वहीं युवाओं की धड़कन पढ़ाने वाले भी गीत गाते हैं.
होली में अली मिले राम मिले रमजान….
होली में अली मिले राम मिले रमजान . विश्व गुरु हो जाएगा फिर से हिंदुस्तान प्रख्यात कवि डॉ सुरेश अवस्थी की यह पंक्तियां चरितार्थ होती है. यहां के मुस्लिम हिन्दू मिश्रित आबादी ग्राम बड़कागांव में जहां हुरियारे गालियां देकर फगवा वसूलते. वहीं होली की स्थापना से लेकर सफाई और होली मिलन तक में मुस्लिम समुदाय के लोग भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ देते हैं. यहां की होली सच्चे अर्थों में आपसी सद्भाव की मिसाल है.
बड़कागांव में शाम तक जुलूस चलता है
बैंड बाजे के साथ निकलने वाले जुलूस में लोगों की अच्छी खासी शिरकत रहती है और लोग गालियां देकर फगुआ (नेग) वसूलते हैं. हुड़दंग होली वाले दिन सुबह 9:00 बजे से शुरू होकर पड़ोस के टोले मोहल्ले तक पहुंचता है. इसके बाद शाम तक होली का हुड़दंग चलता है
कुछ गांव या टोले महलों से होली के लिए बजे काजल के साथ होली खेलने वाले की टीम निकालता है . इसमें शामिल लोगों का मुंह
रंग अबीर से रंग दिया जाता है.