जेएन टाटा की दूरदर्शी सोच है जमशेदपुर और टाटा स्टील

झारखंड के विकास के प्रति टाटा स्टील की प्रतिबद्धता

टाटा स्टील मना रही जमशेदजी नसरवानजी टाटा की 185 वीं जयंती पर विशेष

जमशेदपुर : एक सदी से ज्यादा समय से भी पहले जब स्वतंत्र भारत के लिए खाका तैयार किया जा रहा था तब टाटा स्टील के संस्थापकों ने एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण की दिशा में पहला कदम उठाते हुए स्टील के उत्पादन के लिए स्वदेशी क्षमता निर्माण की कल्पना की थी और जो वास्तव में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है। आज जब टाटा स्टील, टाटा समूह के संस्थापक जमशेतजी नसरवानजी टाटा की 185 वीं जयंती मना रही है, तो यह राष्ट्र निर्माण और आत्मनिर्भरता के साथ ही सतत विकास की दिशा में भारत की भागीदारी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करती है।

बताते चलें कि टाटा स्टील 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के रूप में अस्तित्व में आई और भारत की पहली एकीकृत स्टील कंपनी होने का गौरव हासिल किया। वास्तव में यह स्वदेशी उद्यम था। यह उस समय की बात थी जब राष्ट्र लोकमान्य तिलक के स्वदेशी आंदोलन के आह्वान में शामिल हो गया था और उपनिवेशवादियों से इस तरह से लड़ना शुरू किया जो 1857 के विद्रोह के बाद से नहीं देखा गया। इस प्रकार टाटा ने भारत के लोगों से पूंजी जुटाने की अपील कर इसपर प्रतिक्रिया दी। वर्षों बाद जेएन टाटा के छोटे बेटे सर दोराबजी टाटा ने लिखा कि उन्हें इस बात पर कितना गर्व है कि देश के औद्योगिक विकास के लिए भारत की संपत्ति से इतनी बड़ी राशि जुटाई गई थी।“यह पहली बार था कि जब भारत का कच्चा माल बाहर नहीं गया और देश में बेचने के लिए तैयार वस्तुओं के रूप में वापस आया। सबसे बढ़कर, यह एक विशुद्ध रूप से स्वदेशी उद्यम था और जो स्वदेशी धन द्वारा वित्तपोषित और स्वदेशी प्रतिभा द्वारा प्रबंधित था।

”वहीं 1912 में जमशेदपुर में टाटा स्टील प्लांट से 1 लाख टन के स्टील के पहले इंगट का उत्पादन हुआ। प्रथम विश्व युद्ध के चरम पर 1916 तक प्लांट ने क्षमता के अनुरूप उत्पादन किया और उसी वर्ष अपना पहला विस्तारीकरण कार्यक्रम ग्रेटर एक्सपेंशन स्कीम का प्रस्ताव शेयर धारकों की मंजूरी के लिए पेश किया। योजना को स्वीकृति मिल गयी। टाटा स्टील ने युद्ध के तुरंत बाद विस्तारीकरण शुरू किया और 1924 तक प्रति वर्ष 4 लाख 20 हजार टन बिक्री योग्य स्टील का उत्पादन बढ़ा दिया।इसी तरह 1930 के दशक की शुरुआत तक यह भारत की स्टील की 72 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति कर रहा था। जिसमें रक्षा आवश्यकताओं से लेकर रेलवे बुनियादी संरचना, विनिर्माण उद्योगों और हावड़ा ब्रिज जैसी प्रतिष्ठित परियोजनाओं को शामिल किया गया था। आज तक कोलकाता के क्षितिज को परिभाषित करने वाले पुल को बनाने में 23 हजार टन या फिर यूं कहें कि लगभग 85 प्रतिशत स्टील का उपयोग किया गया था और जो जमशेदपुर से आया था। कंपनी ने समानांतर रूप से स्वदेशी बौद्धिक पूंजी को बढ़ावा देने और उसका लाभ उठाने में निवेश किया। इसने 1921 में “विदेशी तकनीकी विशेषज्ञों को उनके भारतीय समकक्षों के साथ बदलने के लिए” जमशेदपुर टेक्निकल इंस्टीट्यूट की स्थापना की। जिसके बाद इसने जमशेदपुर में अनुसंधान और नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना की। इसने नए प्रकार के स्टील के अनुसंधान और विकास को गति दी और टिस्क्रोम, टिस्कोर और टाटा सन जैसे ब्रांडों की लॉन्चिंग की। इन सभी ने टाटा स्टील को 1939 तक ब्रिटिश साम्राज्य में सबसे बड़ा एकीकृत स्टील प्लांट बनने के लिए प्रेरित कर वैश्विक मंच पर भारतीय स्टील को देखने के नजरिए को हमेशा के लिए बदल दिया।

भारत की अर्थव्यवस्था और भविष्य के लिए टाटा स्टील का महत्व इतना था कि इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कुछ सबसे बड़े नेताओं जैसे महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और राजेंद्र प्रसाद का समर्थन प्राप्त था। वहीं गांधीजी ने 1920 के दशक में जमशेदपुर का दौरा कर 20 हजार दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था कि”यह मेरी महत्वाकांक्षा थी कि मैं भारत में सबसे महान भारतीय उद्यमों में से एक को देखूं और वहां काम की स्थितियों का अध्ययन करूं।” यकीन मानिए अपनी 35 साल की सार्वजनिक सेवा के दौरान हालांकि मैं खुद को पूंजीवाद के खिलाफ मानता रहा हूं, पूरी विनम्रता से मैं कह सकता हूं कि मैं यहां पूंजीपतियों के मित्र के रूप में भी आया हूं। टाटा के मित्र के रूप में। उन्होंने आगे कहा कि मैं इस महान भारतीय कंपनी की समृद्धि और इस महान उद्यम की सफलता की कामना भी करता हूं।”कृषि, उद्योग और आधारभूत संरचना में एक प्रमुख घटक, स्टील का निर्माण, किसी देश के आर्थिक विकास से निकटता से जुड़ा हुआ है।

1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो उसे कृषि के साथ-साथ औद्योगिक क्रांति की भी आवश्यकता थी। कारखानों, बांधों, बिजली संयंत्रों और अन्य बुनियादी संरचना के निर्माण के लिए स्टील आवश्यक था। कृषि उपकरणों के निर्माण के लिए भी यह आवश्यक था। भारत के औद्योगीकरण के लिए आवश्यक पूंजीगत वस्तुओं के आयात को कम करना भी आवश्यक था। उस समय देश के सबसे बड़े इस्पात निर्माता के रूप में टाटा स्टील ने भारतीयों के समक्ष खड़ी महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में राष्ट्र निर्माण के कठिन कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। योजनाबद्ध वृहद पैमाने पर औद्योगिक और बुनियादी संरचना के विकास का युग 1951 में क्रमिक पंचवर्षीय योजनाओं के साथ शुरू हुआ। इन योजनाओं के लिए स्टील जिसमें भाखड़ा-नांगल बांध, बिजली संयंत्र, भारी इंजीनियरिंग उद्योग, रेलवे और अन्य परिवहन, पूरे शहर जैसे चंडीगढ़ समेत अन्य प्रतिष्ठित परियोजनाएं शामिल थीं और जमशेदपुर से शुरू हुई थी। आज स्टील का पहला इंगट तैयार होने के 110 साल बाद टाटा स्टील ने एक लंबा सफर तय किया है। लेकिन राष्ट्र निर्माण में इसकी भूमिका बदली नहीं है। विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कंपनी के उत्पादों और ब्रांडों का पोर्टफोलियो ऑटोमोटिव, निर्माण, औद्योगिक व सामान्य इंजीनियरिंग और कृषि जैसे बाजार क्षेत्रों में तेजी से विस्तारित हुआ है।

भारत में एक तिहाई से अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में अब टाटा स्टील का योगदान होता है। कंपनी ने कम से कम 40 प्रमुख हवाई अड्डों और लगभग सभी मेट्रो रेल नेटवर्क के निर्माण में मदद की है। जिससे देश में यात्रियों की मांग कई गुना बढ़ने की उम्मीद है। इसने देश के दो-तिहाई फ्लाईओवर और पुलों के निर्माण में योगदान किया है। जिसमें मुंबई के बांद्रा-वर्ली सी लिंक और असम के बोगीबील ब्रिज जैसे ऐतिहासिक पुल शामिल हैं। टाटा स्टील देश को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खनन के लिए आवश्यक उपकरणों से लेकर पनबिजली पैदा करने वाले बांधों को मजबूत करने, सौर मॉड्यूल माउंटिंग संरचनाओं को मजबूत करने, बिजली संयंत्रों का निर्माण करने और ट्रांसमिशन लाइनों को मजबूत करने तक। यहां तक कि इसने गुजरात में नरेंद्र मोदी स्टेडियम जैसे खेल के बुनियादी संरचना का निर्माण भी किया है और जो दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है। जैसा कि भारत अगली औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार है। टाटा स्टील प्रौद्योगिकी-आधारित कारोबार रूपांतरण में निवेश जारी रखने में सबसे आगे रही है। कंपनी की डिजिटल स्टीलमेकिंग में अग्रणी बनने और इंडस्ट्री 5.0 के लिए एक प्रकाशस्तंभ बनने की दृढ़ योजना है। नवाचार और प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करने और अपने संस्थापक के दृष्टिकोण से निर्देशित टाटा स्टील लोगों और पृथ्वी दोनों के हित के लिए काम करना जारी रखे हुए है।

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