एमजीएम अस्पताल के किचेन में कार्यरत कर्मचारियों को गूगल पे, फोन पे और नगद दिया जा रहा है वेतन

 ठेकेदार खुलेआम कर रहा है शोषण, उड़ रही है सरकारी नियमों की धज्जियां

 

कालीचरण

जमशेदपुर : कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम में महिनों से किचन का ठेका लिए जेना इंटरप्राइजेज द्वारा सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। साथ ही ठेकेदार द्वारा यहां काम करने वाले कर्मचारियों का शोषण भी किया जा रहा है। मगर इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं है। वहीं शोषण का शिकार हो रहे कर्मचारी निकाले जाने के डर से इसका विरोध भी नहीं कर पा रहे हैं। जिसके कारण ठेकेदार अपनी करने से बाज नहीं आ रहा है। बताया जा रहा है कि किचन का ठेका जेना इंटरप्राइजेज को मिला हुआ है। जिसमें महिला और पुरुष मिलाकर बीस कर्मचारी कार्यरत है। जिसमें आठ सर्विस मैन, दो कुक, पांच हेल्पर, तीन महिला मजदूर, एक सुपरवाइजर और एक मैनेजर शामिल है। जिन्हें ठेकेदार द्वारा अपने मन मुताबिक वेतन दिया जा रहा है। जैसे तीन महिला मजदूर को 5-5 हजार रुपए, सर्विस मैन को 9500 रुपए, हेल्पर को 8500 हजार रुपए, सुपरवाइजर को 12000 रुपए और कुक को 12500-13000 रुपए वेतन माह के 15 तारीख तक दिया जाता है। मगर वेतन कर्मचारियों के बैंक खाते में नहीं दिए जाते हैं। बल्कि कर्मचारियों को ऑनलाइन एप फोन पे और गूगल पे पर दिए जाते हैं। वहीं जिन कर्मचारियों के पास यह सुविधा नहीं है। उन्हें सीधे नगद हाथों में वेतन दे दी जाती है। वहीं किचन के मैनेजर सुजय धारा को ठेकेदार द्वारा वेतन के पैसे ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। जिसके बाद वह सभी को निकालकर वेतन देता है। वहीं ठेकेदार द्वारा ना ही किसी कर्मचारी को पीएफ दिया जाता है और ना ही ईएसआई की सुविधा ही दी जाती है। या फिर यूं कहें कि सरकारी अस्पताल में ही सरकारी श्रम कानून नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। नियमत: जिस ठेका कंपनी में 20 या इससे अधिक कर्मचारी कार्यरत होते है। उस ठेका कंपनी को खाते में वेतन देने के साथ साथ पीएफ और ईएसआई की सुविधा भी देनी है। मगर यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। जबकि पूर्व में अस्पताल अधीक्षक डॉ रविंद्र कुमार ने कहा था कि वे इस संबंध में जांच करेंगे। मगर लगता है कि उन्हें कर्मचारियों की कोई फिक्र ही नहीं है। वहीं नई प्रशासनिक अधिकारी एसडीएम धालभूम पारुल सिंह ने दो बार अस्पताल का निरीक्षण भी किया था। इस दौरान अधिकारियों ने उन्हें अपने मन मुताबिक ही निरीक्षण करवाया था। ताकि उनपर कोई आंच न आए और वे बचे रहे। अस्पताल के जिन विभागो में निरीक्षण करना जरुरी था। वहां अधिकारी एसडीएम को लेकर ही नहीं गए। अब देखना यह है कि कब तक ठेकेदार पर प्रबंधन या फिर प्रशासनिक अधिकारी द्वारा कार्रवाई की जाती है।

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