जमशेदपुर : विधायक सरयू राय ने राज्य के नवनियुक्त मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा कि विगत 31 जनवरी की संध्या तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा अपने पद से त्यागपत्र दिए जाने और उसी रात्रि राज्यपाल द्वारा उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिए जाने के बाद तत्कालीन सरकार स्वतः भंग हो गई थी। जिसके बाद 2 फरवरी को झारखण्ड के नए मुख्यमंत्री के रूप में उनका शपथ ग्रहण हुआ। इस दौरान संसदीय कार्य विभाग छोड़ सभी विभागों के मंत्री वे स्वयं हो गए। सरयू राय ने कहा कि 31 जनवरी की संध्या और उनके शपथ लेने के बीच की अवधि में झारखण्ड में कोई सरकार ही नहीं थी। मगर इसी बीच स्वास्थ्य विभाग में उपर्युक्त विषयक अधिसूचना भी तैयार हो गई और जिस दिन आपकी सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत प्राप्त किया, उसी दिन यानी 5 फरवरी को यह अधिसूचना निर्गत हो गई। इस बारे में संबंधित संचिका पर अवश्य किसी सक्षम प्राधिकार का आदेश हुआ होगा। उन्होंने कहा कि जब भी कोई सरकार बदलती है तो सरकार के अपदस्थ होने के समय जो भी निर्णय संचिका में लिए जाते हैं, उनकी अधिसूचना तत्काल प्रभाव से रोक दी जाती है। परंतु इस मामले में स्वास्थ्य विभाग ने सरकार के अपदस्थ होने के बाद उपर्युक्त विषयक अधिसूचना को निर्गत कर दिया है और जो पूर्णतः अवैधानिक है। आश्चर्य है कि उपर्युक्त विषयक अधिसूचना में स्वास्थ्य विभाग ने 24 चिकित्सकों की एकमुश्त प्रतिनियुक्ति भी की है। जबकि कार्यपालिका नियमावली के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुरूप ऐसी प्रतिनियुक्तियां मुख्यमंत्री से आदेश लिए बिना नहीं की जा सकती हैं। इस संबंध में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अथवा सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में आपने ऐसी किसी संचिका पर आदेश दिया है अथवा नहीं। इस विषय में स्वास्थ्य विभाग से आपके स्तर पर जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि आपको स्मरण होगा कि मंगलवार 6 फरवरी को विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हो रहे चर्चा के दौरान मैंने इस विषय को सदन में उठाया था और आसन के माध्यम से आपसे अनुरोध किया था कि सरकार का उत्तर देते समय इस बारे में वस्तुस्थिति की जानकारी सदन को दी जाय। परन्तु धन्यवाद प्रस्ताव पर परिचर्चा का उत्तर देते समय संसदीय कार्य मंत्री इस विषय पर मौन रहे। इसलिए इस विषय की ओर पत्र के माध्यम से आपका ध्यान आकृष्ट कराया है। उन्हें लगता है कि आपको प्रासंगिक संचिका स्वास्थ्य विभाग से मंगाकर उसका अवलोकन करना चाहिए। साथ ही यह भी देखना चाहिए कि इस मामले में प्रासंगिक नियमों का पालन हुआ है या नहीं। हो सकता है कि स्वास्थ्य विभाग के संबंधित अधिकारियों ने अधिसूचना निर्गत करने के पूर्व तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री से पीछे की तिथि में इसपर हस्ताक्षर करा लिया हो। यदि ऐसा है तो यह मंत्री एवं संबंधित अधिकारियों का भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। यदि तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री द्वारा संचिका में पिछली तिथियों से आदेश करने के बाद यह आदेश बाद में निर्गत हुआ है तो भी यह अनुचित है। क्योंकि ऐसी अधिसूचना मुख्यमंत्री के आदेश के बगैर निर्गत नहीं की जा सकती है। बताते चलें कि 5 फरवरी को निर्गत अधिसूचना की प्रतिलिपि भेजते समय भी इसमें मुख्यमंत्री (मंत्री) के आप्त सचिव का उल्लेख नहीं है और केवल विभागीय मंत्री के आप्त सचिव का उल्लेख है। जिसका अर्थ यह है कि आनन-फानन में अधिसूचना जारी की गई है और अधिसूचना जारी करते समय प्रासंगिक नियम एवं वैधानिक परम्परा की अवहेलना की गई है। अंत में विधायक सरयू राय ने अनुरोध किया है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में विधिसम्मत कार्रवाई करने, उपर्युक्त विषयक अधिसूचना को रद्द करने तथा इस तरह का षडयंत्र करने वाले तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री समेत अन्य संबंधित अधिकारियों पर विधिसम्मत कार्रवाई करने की मांग भी की है।
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