ईमानदारी के जंग में शहादत का नाम मोहर्रम है: अविनाश देव

 

मेदिनीनगर: खलीफा खुद को जब अल्लाह घोषित कर दिया तब हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन इस बात को मानने से इंकार कर गए। न मानने के जुर्म में हुसैन साहब को कर्बला के मैदान में शहादत देना पड़ा। जैसे आज भी हमारे वजीर ए आजम खुद को ईश्वर से जोड़ते हैं न मानने पर राष्ट्रद्रोही भी कहते हैं। इसी शहादत के याद में मोहर्रम मनाते हैं। आज मोहर्रम के जुलूस में शामिल होकर गंगा यमुनी की साझी विरासत को आबाद किया। अपने संबोधन में हमने कहा मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। विविधताओं से भरा हमारा मुल्क आपसी भाईचारा प्रेम से रहते आया है और रहेगा भी। जहां अब्दुल रहीम खानखाना हुए तो रैदास और नानक भी हुए। सब मिल कर हम देश के तरक्की और सामाजिक शौहाद्र बनाए रखे हुए है। सबों से हमारी गुजारिश होगी पलामू को साझि संस्कृति का आइना बनाएं ताकि दुनिया को हम प्रेरणा दे सकें।

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