एक साथ दो नहीं बल्कि चार नौकाओं की सवारी करते पदाधिकारी

मो. ओबैदुल्लाह शम्सी की क़लम से…

गिरिडीह:- कहा जाता है कि एक साथ दो नावों पर पैर रखना काफी खतरनाक सिद्ध हो सकता है। ऐसा करना न केवल जोखिम भरा बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। कहा तो यह भी जाता है कि एक वक्त में एक काम करना ही अच्छा होता है। एक तीर से दो निशान लगाना भी काफी प्रसिद्ध कहावत है लेकिन वर्तमान समय में यदि जिले में पदस्थापित प्रशासनिक पदाधिकारियों की बात की जाए तो इनमें से कुछ ऐसे हैं जो एक- दो नहीं बल्कि एक साथ तीन या चार नावों की सवारी कर रहे हैं। अब इसका कारण चाहें पदाधिकारियों की कमी,इच्छा से,इच्छा के विरुद्ध, सुधारात्मक पहल वगैरह- वगैरह जो भी हो मगर एक साथ बहु नौका विहार किया तो अवश्य जा रहा है।

जिला उपायुक्त के पास विभिन्न विभागों का तो अतिरिक्त प्रभार है ही जिले के कुछ बीडीओ को बीडीओ के साथ-साथ सीओ, एसडीपीओ एवं एमओ का भी अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है।

अब ऐसा क्यों है ये तो विभागीय लोग, प्रशासन एवं सरकार जानती है लेकिन इससे आम जनता और विभाग का कितना भला हो रहा है यह एक बड़ा सवाल है। ये तो सब जानते हैं कि एक व्यक्ति या पदाधिकारी एक समय में किसी एक विशेष विभाग को जितना सफलता पूर्वक संभाल सकता है उसी प्रकार वो 3 या 4 विभागों के उत्तरदायित्वों का निर्वाह एक साथ उतना ही सफलतापूर्वक नहीं कर सकता है।

ऐसा नहीं है कि इस से परेशानी केवल पदाधिकारियों को ही है। सैंकड़ों की संख्या में आम जनता भी जब अपने विभिन्न कार्यों को लेकर एक ही व्यक्ति या पदाधिकारी के पास पहुंचेगी या उसे ढुंढती फिरेगी तो वह विशेष व्यक्ति या पदाधिकारी उन्हें अपना कितना समय दे सकेगा और वह लोगों के लिए कितना उपलब्ध हो सकेगा यह सरलता पूर्वक सोचा और समझा जा सकता है।

उदाहरण के लिए, अनाज की समस्या को लेकर जब कार्डधारी एमओ से मिलने जाएगी तो उनका कार्यालय उन्हें बंद मिल सकता है और वहां पर बैठा आदेश पालक जनता को यह कह कर बेरंग लौटा सकता है कि बीडीओ कम सीओ कम एसडीपीओ कम एमओ साहब मनरेगा योजनाओं की जांच,अंचल से संबंधित मामले या फिर आंगनबाड़ी केंद्रों के निरीक्षण हेतु फिल्ड गए हैं।

 

सौ बात की एक बात यह कि जब विभागों में मैन पावर का इतना ही अभाव है तो उन्हें भरा क्यों नहीं जाता है और यदि काम चलाने लायक लोग या पदाधिकारी उपलब्ध हैं तो उन्हें स्वतंत्रता के साथ काम करने का अवसर क्यों नहीं दिया जाता है।

आखिर कब तक ऐसा प्रयोग किया जाएगा? आखिर कब तक काम चलाऊ पदाधिकारी स्वरूप इंजनों के सहारे विभागों के रेल रुपी डिब्बों को खींचा जाता रहेगा।

बहरहाल ये मेरे अपने निजी विचार हैं। काम तो आखिर प्रशासन और सरकार को ही करना है। आशा है कि मेरे शब्दों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाएगा और जनहित में जो अच्छा होगा वही काम किया जाएगा।

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