विश्रामपुर का रजगुड़ूवा पहाड़ बना शराबियों व अपराधियों का अड्डा

मेदिनीनगर : विश्रामपुर नगर परिषद का यह क्षेत्र प्राकृतिक रुप से काफी मनोरम व पहाड़ियों से घिरा है। जहां कल तक आसपास के लोग शाम को भ्रमण को परिवार के साथ निकलते थे। जहां प्राकृतिक सौन्दर्य का लुत्फ उठाते थे। लेकिन इन दिनों शाम ढलते हीं आने-जाने में भी डर लगने लगता है, कारण सामान्य लोग कम नशे में धुत्त असामाजिक तत्व ज्यादा नजर आते हैं। अधिकांशत: ऎसा नजारा हर रोज देखने को मिलता है। स्थानीय युवा जो शराब को एक फैशन मानते हुए पीकर अपने को गर्वान्वित महसूस करते है। युवाओं की टीम विश्रामपुर से शराब की बोतलें व साथ चखने की कुछ खाद्य सामग्री लिए रजगुड़ूवा पहाड़ी क्षेत्र पहुंचते हैं। जहां पत्थरों की बड़ी-बड़ी चट्टानें टेबल का काम करता है। जहां बैखौफ घंटों बैठ शराब का लुत्फ उठाते हैं। ऐसे में इससे अच्छा जगह और कोई उपयुक्त नहीं लगता। इतना हीं नहीं शराबियों के द्वारा बोतलों को पत्थरों पर पटक कर तोड़ दिया जाताहै। बोतल की टुकड़े जहां पर्यावरण को नुकशान पहुंचा रहा वहीं बोतलों की बिखरे टुकड़े आते जाते लोगों के पैरों में जख्म भी दे रहे है।

पुलिस को जानकारी फिर भी खामोश

विश्रामपुर नगर परिषद का रजगुड़ूवा पहाड़ शराबियों व अपराधियों का अड्डा बन गया है। स्थानीय लोगों ने कई बार इस पर आपत्ति जताई, लेकिन लोगों की इन शराबियों व अपराधियों के आगे उनकी एक नहीं चलती। कई बार यहां सरकारी कर्मीं भी शराब पीते हुए नजर आएंगे। ऎसा नहीं है कि इस बात की जानकारी पुलिस को नहीं है। बावजूद इन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती, जिसके कारण दिनों-दिन यहां इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। पीने वालों को किसी भी बात का डर नहीं है। पुलिस प्रशासन का इन्हें तनिक भी डर नहीं लगता। ऎसे में शाम के समय यहां से लोगों का निकलना भी मुश्किल हो जाता है।

एनएच 75 से विश्रामपुर को जोड़ती है पहाड़ी पथ

रजगुड़ूवा पहाड़ के किनारे से एक कच्ची पथ निकलती है जो विश्रामपुर को सिधे एनएच 75 स्थित केतात को जोड़ती है। लोग इस पथ से आवागमन बैखौफ होकर किया करते थे। लेकिन कुछ समय से यह पथ सेंसेटिव सा बन गया है। इसका कारण शराबियों व अपराधियों का यहां ठिकाना बनना है। शाम होते हीं शराब की बोतलों के साथ लोगों का जमावड़ा लगने लगता है। जो अलग-अलग बैठकर मनोरंजन के साथ शराब की बोतले को छलकाते नजर आते हैं। इससे भयभीत लोग इस रास्ते से चलना छोड़ दिया। वे बीमोड़ की पांच किलोमीटर अतिरिक्त दूरी तय कर पहुंचते हैं।

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