पश्चिम बंगाल झारग्राम में द्वितीय अखिल भारतीय संताली महिला लेखिका एवं साहित्य सम्मेलन का हुआ समापन

 

जमशेदपुर : ऑल इण्डिया संताली लेखक संघ (एआईएसडब्ल्यूए) की महिला शाखा और झारग्राम जनजातीय परिषद (जेटीसी) द्वारा आयोजित द्वितीय अखिल भारतीय संताली महिला लेखिका सम्मेलन एवं संताली साहित्य सम्मेलन रविवार सफलतापूर्वक संपन्न हुआ और जो संताली साहित्य एवं संस्कृति के प्रचार एवं संरक्षण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इस कार्यक्रम में पूरे भारत से संताली महिला लेखिकाओं, कवियों और विद्वानों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और जो संताली साहित्यिक विरासत की समृद्धि का जश्न मनाने और क्षेत्र में महिलाओं के सामने आने वाली समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक साथ आए।सम्मेलन का शुभारंभ पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ हुई। जिसमें दीप प्रज्वलन और प्रार्थना समारोह शामिल था। जिसके बाद संताली साहित्य के महान विभूतियों और सांस्कृतिक प्रतीकों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए चित्रों पर माल्यार्पण किया गया। इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि बीरबाहा हांसदा, मंत्री और पश्चिम बंगाल संताली अकादमी की अध्यक्ष ने आदिवासी पहचान को मजबूत करने और महिलाओं को सशक्त बनाने में साहित्य की भूमिका पर जोर देते हुए एक प्रेरक भाषण के साथ कार्यक्रम का उद्घाटन किया। वहीं विशेष अतिथियों में चिन्मयी हांसदा मरांडी झारग्राम जिला परिषद की सवाधिपति भी शामिल थी। इसी तरह उपस्थित लोगों में पद्मश्री डॉ दमयंती बेसरा प्रसिद्ध विद्वान और एआईएसडब्ल्यूए शाखाओं और साहित्य अकादमी के प्रतिनिधि शामिल थे। साथ ही अपने मुख्य भाषण में महासचिव रवींद्र नाथ मुर्मू ने सांस्कृतिक लोकाचार की रक्षा में संताली महिला लेखकों के योगदान पर प्रकाश डालते हुए युवा पीढ़ी से अपनी भाषाई और साहित्यिक विरासत पर गर्व करने का आग्रह भी किया। उदघाटन सत्र में मुख्य रूप से गंगाधर हांसदा एवं मदन मोहन सोरेन, पूर्व संयोजक द्वय, साहित्य अकादमी नई दिल्ली निरंजन हांसदा, लक्ष्मण किस्कू, डिजापदा हांसदा, मानसिंह मांझी, गणेश टुडू, डॉ सचिन मण्डी, पिताम्बर हांसदा तथा उड़ीसा से अर्जुन माण्डी उपस्थित रहे। इस सत्र में संताली साहित्य और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में संताली महिला लेखकों की भूमिका पर एक विचारोत्तेजक चर्चा में प्रमुख पैनलिस्टों की अंतर्दृष्टि शामिल थी। जिसका संचालन महिला विंग की सचिव सुचित्रा हांसदा ने किया। वहीं अंजली किस्कू, पवित्रा हेंब्रम और बालिका हेंब्रम और पापिया माण्डी जैसे पैनलिस्टों ने साहित्य, लिंग और पहचान के प्रतिच्छेदन पर विचार किया तथा प्रतिभागियों के बीच खुले संवाद को प्रोत्साहित भी किया। विद्वानों ने संताली साहित्य में लिंग दृष्टिकोण, डिजिटल परिवर्तन तथा साहित्य का आदिवासी इतिहास और लोक परंपराओं के साथ प्रतिच्छेदन जैसे विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए। कवि सम्मेलन ने रचनात्मकता के लिए एक जीवंत मंच प्रदान किया। जिसमें कई कवित्रियों ने संताली समुदाय की सांस्कृतिक और सामाजिक कथाओं को उजागर करने वाली रचनाएं भी सुनाई। इस सत्र की अध्यक्षता शोभा हांसदा ने की। अतिथि के रूप में मानिक हंसदा, वीर प्रताप मुर्मू, सारदा मुर्मू, सरस्वाति हांसदा एवं जलेश्वर किस्कू उपस्थित रहे। सम्मेलन का समापन प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और स्मृति चिन्ह वितरित करने के साथ हुआ। जिसके बाद कार्यक्रम की याद में एक समूह फोटोग्राफ भी लिया गया। इस सम्मेलन ने डिजिटलीकरण और वैश्वीकरण जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान करते हुए आदिवासी साहित्य और संस्कृति को समृद्ध करने में संताली महिला लेखकों की महत्वपूर्ण भूमिका की पुष्टि की। इस कार्यक्रम ने संताली विरासत को संरक्षित करने और स्वदेशी आवाजों को बढ़ाने के लिए सहयोगी प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।अंत में एआईएसडब्ल्यूए और जाहेर थान कमिटी ने सभी प्रतिभागियों और प्रायोजकों के प्रति उनके समर्थन के लिए आभार व्यक्त करते हुए संताली लेखकों के लिए मंचों को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनकी विरासत को संरक्षित करने की प्रतिज्ञा भी ली।

 

प्रमुख प्रस्तुतियों में ये थे शामिल :-

 

सलीमा मरांडी – संथाली में रचनात्मक लेखन के माध्यम से महिलाओं का सशक्तिकरण।

 

सम्पा हांसदा – समकालीन संताली साहित्यिक रुझान और उभरते लेखक।

 

सुरजमुनि मुर्मू ने संताली लोक संगीत एवं नृत्य विषय पर चर्चा की। इस सत्र में अतिथि के रूप में स्वप्ना हेंब्रम, विशाखा मुर्मू, माया माण्डी आदि थे।

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