सोहराय मेले में जानवरों एवं सुअरो व मुर्गों की लड़ाई देख लोक आनंद उठाएं

गाय बैलों की सूअर के साथ लड़ाई की परंपरा वर्षों से चली आ रही है

संजय सागर

बड़कागांव : बड़कागांव प्रखंड में सोहराय पर्व बड़े ही अनोखे अंदाज में मनाया गया। बड़कागांव के खैरातरी, मिर्जापुर, आंगो में मेले का आयोजन किया गया। जहां बैलों गायों एवं भैंसों को सूअर एवं मुर्गा के साथ लड़ाई करवाई गई। बड़कागांव की विधायक अंबा प्रसाद बड़कागांव के कई सोहराय मिले एवं कई मंदिरों में भ्रमण कर सुख समृद्धि की कामना की एवं ग्रामीणों से मिलकर दीपावली की शुभकामनाएं दी।

 

दीपावली के दूसरे दिन यह पर्व मनाया जाता है। किसान वर्ग अपने पालतू जानवरों में से गाय, बैल भैंस को स्नान करके लाल रंग से वीरता कर उनके शरीर में चित्र बनाया। गोबर से घर आंगन एवं गौशाला की लिपाई – पुताई की गई। दूधिया माटी से सोहराय चित्र बनाया गया। इसके बाद पालतू जानवरों के सिंह में तेल लगाकर सिंदूर लगाया गया। इसके बाद माता लक्ष्मी से पूजा अर्चना का सुख शांति और समृद्धि की विनती की गई। पालतू जानवर को चराने ने वाले गोरखिया को कपड़ा दिया गया। उसके बाद पालतू जानवरों को खीर खिलाया गया। दोपहर में सोहराय मेला का आयोजन बड़कागांव की मिर्जापुर एवं खैरातरी में ले जाया गया जहां एवं भैंसों के साथ सूअर की लड़ाई करवाई गई। कांडतरी पंचायत के मुखिया पारसनाथ महतो व खैरातरी निवासी डॉक्टर रघुनंदन प्रसाद ने बताया कि सोहराय पर्व में जानवरों एवं सूअर और मुर्गा के साथ लड़ाई करवाने की परंपरा दादा, परदादा के पहले से चलता आ रहा है। जानवरों एवं सुअरो, मुर्गों के बीच लड़ाई करवाने का मुख्य मकसद है जनवरो को हिम्मत और साहस बढ़ाना, ताकि जंगली जानवरों से वह सामना कर सके।

सुदूरवती गांव में विशेष चित्रकारी सोहराय कला, दिवार निपाई -पोताई की जाती है। दीपावली की अगले दिन सुबह उठकर किसानों ने अपने जानवरों को नदी, तालाब सहित अन्य जल स्रोतों में जाकर नहाते हैं। उसके बाद किसानों ने अपने घर लाकर उसे महिलाओं द्वारा विधिवत श्रृंगार, पैर पूजन व रंगो से गाय, बैल को रंगने व पांच प्रकार का खाना (पखेवा ) बनाकर खिलाया जाता है। जानवरों के सिंग में श्रृंगार लगाते हैं उसके बाद गले मैं फूल की हार एवं उनके शरीर में विभिन्न प्रकार का चित्रकारी रंग बिरंगी- रंगोली बना कर गौशाला में जानवरों को प्रवेश करने के लिए उनके विभिन्न शरीर में तेल लगाकर खाने के लिए विभिन्न प्रकार की अनाज से बने खाना जिसे पखेवा कहा जाता हैं। उसके बाद दिन भर किसानों सोहराई की संस्कृति गीत गाकर ढोल – नगाड़े के साथ बजाकर जानवरों को खूंटा में बांधकर नचवाया व खेलवाया जाता हैं। सोहराय कला में विभिन्न पंचायत व गांवो में बड़ी ही धूमधाम से मेला लगाकर कार्यक्रम आयोजन करते हैं। इसके अलावे आदिवासी बहुल इलाके में ढोल – बाजा के साथ खूब झूमते गाते इस दिन अनाज पैसा व कई खादय समाग्री इकठ्ठा करने का काम रात भर करते हैं एवं मेले में झूमर लगाया जाता है।

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