उडीसा में आयोजित परिचय लेटरेरी फेस्टिवल 23 में टंडवा के डॉ. विनोद राज ‘विद्रोही’ सम्मानित

टंडवा : उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में आयोजित दो दिवसीय ‘परिचय लिटरेरी फेस्टिवल-23’ में झारखंड के साहित्यकार डॉ. विनोद राज ‘विद्रोही’, सम्मानित किये गये है। टंडवा निवासी बिनोद की अबतक चौबीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यह सम्मान उन्हें भुवनेश्वर के पूर्व विधायक प्रियदर्शी मिश्रा और डॉ. रोजलीन पी. मिश्रा के हाथों प्राप्त हुआ। इस साहित्योत्सव का उद्घाटन केंद्रीय साहित्य अकादमी, दिल्ली के अध्यक्ष माधव कौशिक, उड़िया के वरिष्ठ साहित्यकार पद्मभूषण सीताकांत महापात्र, पद्मश्री देवी प्रसन्न पटनायक, डॉ. प्रफुल्ल कुमार मोहंती, प्रसिद्ध साहित्यकार ‌डॉ. फनी मोहंती, प्रियदर्शी मिश्रा तथा डॉ. रोजलीन पी. मिश्रा आदि ने किया। इस सम्मेलन में उड़ीसा, बंगाल, असम, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, तमिलनाडु, यूके, नेपाल आदि से साहित्यकारों ने हिस्सा लिया था।

चतरा जिले के टंडवा निवासी दर्जनों पुरस्कार सम्मानित डॉ. विनोद राज ‘विद्रोही’ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लंबे समय तक पत्रकारिता करते रहे। 2010 में सरकारी शिक्षक में आने के बाद पत्रकारिता छोड़ दी। लेकिन सार्थक लेखन से विमुख नहीं हुए। यही कारण है कि अब तक इनकी चौबीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। ये तीन दैनिक, एक सप्ताहिक में उप संपादक रहे और दो पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सम्मानित होकर लौटे।

डॉ. बिनोद ने बताया कि अबतक – क्यों करवाते हो दंगे (कविता संग्रह-1997), ज्योत्स्ना में तन्हाई (कहानी संग्रह-1998), कागज की नाव तथा यादों की चिरईं (दोनों कविता संग्रह-1999), गुलदस्ता (गजल संग्रह-1999) चुन्दरू बाबा (पर्यटन-2002), क्यों (कविता संग्रह-2004), कलम के आंसू (लंबी कहानी-2005), क्योंकि मैं लड़की हूं (कविता संग्रह-2006), झारखंड का साहित्य और साहित्यकार (इतिहास-2009), झारखंड की संस्कृति (2012), झारखंड के लोक नृत्य (2012), झारखंड की प्रसिद्ध नारियां (2012), झारखंड की लोक चित्रकला (2012), झारखंड की नदियां, जलप्रपात एवं डैम (2012), झारखंड के पर्व, त्यौहार एवं मेला (2012), रेगिस्तान का सफर (गजल संग्रह-2014) बोलती रेखाएं (रेखांकन संग्रह-2014), और ओह कावेरी! सिर्फ एक बार कहा होता (कहानी संग्रह-2015), जी साहेब, जोहार, इश्क-ए-हजारीबाग, मेरा गांव मुझे लौटा दो (तीनों कविता संग्रह-2021), झारखंड: साहित्य, संस्कृति, पुरातत्व और पत्रकारिता (2021) प्रकाशित हो चुका है।

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