पंचायती राज को लेकर बाबूराम नारायण सिंह ने संविधान सभा में दी थी प्रस्ताव
संजय सागर
बड़कागांव : आजादी की लड़ाई में हजारीबाग का योगदान तो था ही, लेकिन संविधान निर्माण करने में भी हजारीबाग के प्रतिनिधियों का योगदान रहा है. दुनिया का सबसे बड़ा संविधान भारत का संविधान है. यही कारण है कि विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत को कहा जाता है. संविधान निर्माण करने लेकर संविधान सभा की बैठक हुई थी और इस बैठक में हजारीबाग के बाबू राम नारायण सिंह एवं कृष्ण वल्लभ सहाय कई विधेयक में प्रस्ताव रखे थे. 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की परंपरा की शुरूआत हुई हैं. संविधान सभा एक लघु भारत था, जिसमें संतुलित रूप से प्रतिनिधित्व हो इसका प्रयास किया गया था. सभी दलों की भागीदारी इस सभा में सुनिश्चित की गयी थी. झारखंड के इलाके से पीके सेन, देशबंधु गुप्ता, जयपाल सिंह, बाबू रामनारायण सिंह, देवेंद्र नाथ सामंता, बोनिफोस लकड़ा, यदुवंश सहाय, गुप्तनाथ सिंह, रायबहादुर, श्री नारायण महथा, कृष्णवल्लभ सहाय को संविधान सभा के लिए चयनित किया गया था. हजारीबाग के दो सदस्यों ने संविधान सभा में अपनी प्रखर आवाज बुलंदकर कई महत्वपूर्ण विधेयकों की ओर ध्यान आकृष्ट किया था. इसमें एक रामनारायण सिंह व दूसरे केवी सहाय थे.
ब्रिटिश लेखक ग्रीनविले ऑस्टीन की पुस्तक द कॉरनर स्टोन ऑफ द इंडिया कंस्टीच्यूसन के पृष्ठ संख्या 34 में वर्णित है. जुलाई-अगस्त 1947 में संविधान सभा में सदन के चतुर्थ और पंचम सत्र में बाबू रामनारायण सिंह ने पंचायती राज की भरपूर वकालत की थी. उन्होंने बहस के दौरान कहा था – द प्राइमरी यूनिटस ऑफ गवर्नमेंट वी स्टेवलिशड इन बिलेजेज, द ग्रेटेस्ट मेजर ऑफ पावर शुड वेस्ट इन विलेज रिपब्लिक, सिंह अरगूड एंड देन इन प्रोविंसेस एंड देन इन सेंटर.
आज उक्त बहस की सार्थकता सही में दिख रही है. पंचायती राज व्यवस्था का आधार बन गया है. संविधान सभा में वैचारिक मंथन के दौरान निकला विचार महत्वपूर्ण हो गया है. इसी तरह केबी सहाय ने भी जमींदारी उन्मूलन की खामियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया था.