भारत ने कहा है कि क़तर की एक अदालत ने भारत के आठ पूर्व नौसैनिकों को दी गई मौत की सज़ा को कम करते हुए क़ैद तक सीमित कर दी है.
क्या है मामला?
बीते साल अगस्त में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. इसी साल मार्च में इन पर आरोप तय किए गए.
इन भारतीय नौ सैनिकों पर लगाए गए आरोपों को न तो भारत और न ही क़तर की सरकार ने सार्वजनिक किया है.
लेकिन भारतीय मीडिया और अन्य ग्लोबल मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़, इन पूर्व नौसैनिकों पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर अति उन्नत इतालवी पनडुब्बी को ख़रीदने से संबंधित क़तर के ख़ुफ़िया प्रोग्राम के बारे में इसराइल को जानकारी दी थी. यानी मामला जासूसी का है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ गिरफ्तार किए जाने के बाद इन्हें कुछ वक़्त तक एकान्त कारावास में रखा गया था.
26 अक्टूबर को क़तर की अदालत ने इन आठ भारतीय अधिकारियों को फांसी की सजा सुनाई थी. कतर की अदालत के फै़सले के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि वो इस समस्या को सुलझाने के लिए सारे क़ानूनी रास्ते तलाशेगी.
ये लोग क़तर की दहरा अल आलमी नाम की कंपनी में काम करते थे. ये कंपनी सबमरीन प्रोग्राम में क़तर की नौसेना के लिए काम कर रही थी और इसका मक़सद रडार से बचने वाले हाईटेक इतालवी तकनीक पर आधारित सबमरीन हासिल करना था.
कंपनी में 75 भारतीय नागरिक कर्मचारी थे. इनमें से अधिकांश भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी थे. मई में कंपनी ने कहा था कि वो 31 मई 2022 से कंपनी बंद करने जा रही है.
जासूसी के आरोप में गिरफ़्तार आठ कर्मचारियों को पहले ही बर्ख़ास्त कर दिया गया और उनके वेतन का हिसाब-किताब भी कर दिया गया.
बीते मई में क़तर ने कंपनी को बंद करने का आदेश दिया और इसके लगभग 70 कर्मचारियों को मई 2023 के अंत तक देश छोड़ने का निर्देश दिया.
ये मामला फिलहाल क़तर की कोर्ट ऑफ़ अपील में सुना जा रहा था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार मामले में अब तक छह सुनवाई हुई है जिसमें से तीन निचली अदालत में हुई.
9 नवंबर को इस मामले में अपील फाइल की गई थी.
28 दिसंबर से पहले इस मामले की सुनवाई नवंबर 23, नवंबर 30 और दिसंबर 7 को हुई थी.
क़तर के अमीर से मोदी की मुलाक़ात के दो दिन बाद दिसंबर 3 को उन्हें कंसुलर मदद मुहैया कराई गई थी, जिसके तहत भारतीय राजदूत ने इन आठ लोगों से मुलाक़ात की थी.
जारी रखेंगे लड़ाई – परिजन
नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर एक सूत्र ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि इन आठ पूर्व नौसैनिकों को अलग-अलग सज़ा दी गई है. एक अन्य सूत्र ने कहा कि इन्हें तीस साल, 10 साल, 15 साल और 25 साल की क़ैद की सज़ा दी गई है.
अख़बार लिखता है कि विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि क़तर की कोर्ट ऑफ़ अपील ने कप्तान नवतेज गिल और सौरभ वशिष्ठ कमांडर्स पूर्णेंदु तिवारी, अमित नागपाल, एसठ के गुप्ता, बीके वर्मा और सुग्नाकर पकाला और सेलर रागेश की सज़ा को “घटा दिया है”, लेकिन इस बारे में और कोई जानकारी नहीं दी.
मंत्रालय ने कहा कि उन्हें कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार है.
वहीं द हिंदू ने परिवार के एक क़रीबी सूत्र के हवाले से लिखा है कि मौत की सज़ा घटाए जाने को परिवार सकारात्मक बता रहे हैं लेकिन उन्होंने चिंता जताई है कि मामले में इन लोगों पर जासूसी के जो आरोप लगाए गए थे उन्हें बरकरार रखा गया है.
इनके परिजनों को कहना है कि वो इन लोगों को बेगुनाह साबित करने की लड़ाई जारी रखेंगे. एक सूत्र का कहना है कि “पूर्व नौसेना के अधिकारियों के लिए ये कठोर सज़ा है क्योंकि वो निर्दोष हैं”.
मोदी और क़तर के अमीर की मुलाक़ात का केस से कनेक्शन
द हिंदू लिखता है कि इसी साल एक दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में हिस्सा लेने गए पीएम मोदी ने क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हामद अल-थानी से मुलाक़ात की थी. मामला शुरू होने के बाद से दोनों की ये पहली मुलाक़ात थी.
इस मुलाक़ात के दौरान किन बातों पर चर्चा हुई इसे लेकर अधिक जानकारी साझा नहीं की गई, हालांकि मोदी ने सोशल मीडिया पर ये ज़रूर लिखा कि दोनों में “क़तर में रह रहे भारतीय नागरिकों के हालचाल” को लेकर चर्चा हुई.
परिजनों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि गुरुवार को सुनवाई के वक़्त ये आठों भारतीय नागरिक कोर्ट में मौजूद थे, लेकिन जिस वक़्त कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाया उस वक़्त वो कोर्ट में नहीं थे.
एक रिश्तेदार ने कहा कि उम्मीद है आने वाले दिनों में उनके परिवार वाले या फिर दूतावास के कर्मचारी उन्हें पूरी जानकारी देंगे.
परिवार वालों का कहना है अपील फाइल करने के लिए 60 दिन का वक़्त होता है, लेकिन वो इसका इंतज़ार नहीं करेंगे.
एक व्यक्ति के अनुसार, अपील के बाद बीते 40 दिनों में जो कुछ हुआ उसके इन लोगों को दी गई मौत की सज़ा को कम कराने में मदद मिली है इसलिए वो अब और वक़्त बर्बाद न कर के सीधे कोर्ट ऑफ़ कैसेशन में जाएंगे.
नवतेज गिल के एक मित्र ने बताया कि सभी अधिकारियों को अलग-अलग सज़ा दी गई है लेकिन सभी एक साथ मिलकर अपील फाइल करेंगे.
क्या भारत लाया जा सकेगा?
हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि 2015 में भारत और क़तर के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत क़तर में सज़ा पाए भारतीय नागरिकों और भारत में सज़ा पाए क़तरी नागरिकों को वापिस उनके देश लाया जा सकता है, जहां वो अपनी सज़ा पूरी कर सकते हैं.
ये समझौता मार्च 2015 में क़तर के अमीर शेख़ तमीम बिन हामद अल-थानी के भारत दौरे के दौरान हुआ था. ये समझौता केवल उन पर लागू है, जिन्हें किसी अपराध के कारण जेल की सज़ा दी गई है, जिन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई हो उन पर ये लागू नहीं है.
विदेश मंत्रालय का कहना है कि वो आगे के क़दम के बारे में इन आठों लोगों के परिवारों के साथ-साथ क़ानूनी टीम की भी मदद ले रही है.