गांधी जी ने झारखंड में स्वतंत्रता आंदोलन में खाद और बीज डाली 

महात्मा गांधी को झारखंड से रहा है गहरा संबंध

संजय सागर

दे दी हमें आजादी बिना खडग, बिना ढाल,

सावरमती के संत तूने कर दिया कमाल… यह गीत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए रची गई है ।सचमुच में जहां गीत महात्मा गांधी जी की कहानी को व्यक्त करती है। गांधीजी आजादी के लिए जो त्याग और बलिदान दिया उसे हम कभी भूल नहीं सकते । सत्य अहिंसा के मार्ग पर चलकर आजादी दिलाई । महात्मा गांधी ने संकल्प लिया था कि जब तक भारत को आजादी नहीं मिल जाती, तब तक वह कुर्ता या कमीज नहीं पहनेंगे और इन्होंने वैसे ही दृढ़ संकल्प करते हुए बिना हथियार के ही देश को आजादी दिलायी। गांधी जी की तपस्या, त्याग और बलिदान आज भी हम प्रेरणा ले सकते हैं। तभी भारतवर्ष में भ्रष्टाचार ,रिश्वतखोरी आतंकवादी घटनाएं पर काबू पा सकते हैं। वैसे तो आजादी के दिनों में गांधीजी को पूरे देश से लगा रहा लेकिन झारखंड के कई जिले एवं अंचल क्षेत्र में आकर उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में खाद और बीज डालने का काम किया।

झारखंड से महात्मा गांधी का गहरा लगाव रहा। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1917 से 1940 के बीच बापू 12 बार झारखंड आए। सिर्फ यहां के शहरों में ही नहीं, कस्बों-गांवों में जाकर आम लोगों और आदिवासियों से मिले। झारखंड के आचरण और यहां की परंपराओं से भी वे खासा प्रभावित थे। दो मौके ऐसे भी आए जब उन्होंने खुलकर यहां के लोगों की तारीफ की। पहला मौका 1925 में उनके देवघर भ्रमण का था। यहां बाबाधाम की यात्रा और लोगों से संपर्क के बाद उन्होंने अपनी पत्रिका” यंग इंडिया “में देवघर के लोगों और यहां की परंपरा की तारीफ की थी। उन्होंने लिखा कि अन्य मंदिरों के विपरीत यहां छुआछूत नहीं माना जाता, मंदिर सबके लिए खुला है। ये बहुत ही अच्छी परंपरा है। दूसरा मौका 1934 के उनके छोटानागपुर दौरे में आया।

28 अप्रैल, 1934 को उन्होंने गोमिया में सभा की। यहां काफी संख्या में संथाल आदिवासी भी उन्हें सुनने आए थे। संथालों की परंपरा की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा था कि मुझे आप लोगों से मिलकर बहुत खुशी हुई। आप लोग खुद सूत कातते हैं और अपने पहनने का कपड़ा खुद बुनते हैं। ये बहुत अच्छी आदत है। इन दो मौकों के अलावा भी महात्मा गांधी कई बार झारखंड आए और यहां के लोग से मिले।

1940 में महात्मा गांधी अंतिम बार रांची आए थे। तभी वे निवारण बाबू को देखने निवारणपुर गए थे। फिर यहां से 45 किलोमीटर दूर मार्च महीने में रामगढ़ में कांग्रेस के 53वें वार्षिक अधिवेशन में हिस्सा लेने गए थे। रामगढ़ का अधिवेशन गांधीजी के लिए भी काफी महत्वपूर्ण था। रामगढ़ अधिवेशन में 20 मार्च 1940 को कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में भाग लेने के विरोध में प्रस्ताव पारित कर दिया था।

1917 : चंपारण आंदोलन के सिलसिले में चार बार रांची आए थे महात्मा गांधी

रांची में सबसे पहले गांधी जी का आगमन चंपारण आंदोलन को लेकर 4 जून 1917 को ही हुआ था। 29 मई 1917 को उन्हें एक सरकारी पत्र मिला था, जिसमें उन्हें बिहार-ओडिशा के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर एडवर्ड अलबर्ट गेट से 4 जून को मिलने को कहा गया था। ऐसी आशंका जताई जा रही थी गांधी जी को नजरबंद कर लिया जाएगा। गांधीजी की पत्नी और उनके छोटे पुत्र को भी रांची बुलवा लिया गया था। 4 जून 1917 को गांधीजी की मुलाकात अलबर्ट गेट से हुई। वार्ता 3 दिन चली, 7 जून को वे पटना लौट गए।महात्मा गांधी 11 जुलाई 1917 की बैठक में हिस्सा लेने रांची आए थे।22 सितंबर 1917 को भी आंदोलन के सिलसिले में गांधीजी रांची आए। 4 अक्टूबर 1917 को भी गांधी जी रांची में थे, पुष्टि उनके लिखे पत्र से होती है, जो उन्होंने रांची में रहते हुए एडवर्ड को लिखा था।

1920 में महात्मा गांधी का फिर से रांची आगमन हुआ था। तब वे रांची में भीमराज वंशीधर मोदी धर्मशाला में ठहरे थे। उस वक्त उसी धर्मशाला के बाहर लंकाशायर-मैनचेस्टर के कपड़ों की होली जलाई गई थी। उसी वक्त जनजातीय समुदाय के टाना भगत गांधी जी के प्रिय शिष्य बने थे। 5 फरवरी 1921 को पहली बार गांधी जी धनबाद गए, लेकिन समयाभाव के कारण कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं हो सका था। फिर उन्होंने 12 जनवरी 1927 को धनबाद का दौरा किया था। 1934 में झरिया का दौरा किया था। राष्ट्रीय विश्वविद्यालय कोष के लिए झरिया में उन्हें 60 हजार रुपए मिले थे। 15 सितंबर 1925 को बापू ने चाईबासा दौरा किया था। यहां के हो आदिवासियों से गांधी जी खासा प्रभावित थे। रांची लौट रहे थे, तो खूंटी में मुंडाओं से भी बातचीत की थी। रांची से हजारीबाग गए, जहां 18 सितंबर 1925 को संत कोलंबा कॉलेज में छात्रों को संबोधित किया था। 1932 में भी वे हजारीबाग आए थे।

1922 में टाटा प्रबंधन और मजदूरों की यूनियन के बीच हड़ताल की वजह से संबंध बिगड़ गए थे। दीनबंधु एंड्रूज के आग्रह पर गांधी जी 1925 में जमशेदपुर आए। टाटा प्रबंधन और मजदूरों के बीच समझौता कराया। 1934 में गांधी जी ने दूसरी बार और 1940 में तीसरी बार जमशेदपुर यात्रा की थी।1925 में गांधी जी ने देवघर की यात्रा की थी यहां मदिरापान के खिलाफ लोगों को जागरूक किया था। उन्होंने यहां के पंडों की तारीफ की थी। उन्होंने मधुपुर का भी दौरा किया था और स्थानीय टाउन हॉल का उद्घाटन भी किया था। 7 अक्टूबर 1925 को देवघर से खड़गडीहा जाते समय गांधीजी गिरिडीह भी पहुंचे थे।

11 जनवरी 1927 को गांधीजी ने डालटनगंज की भी यात्रा की थी। यहां वे काशी से रेलगाड़ी से पहुंचे थे। यहां लोगों ने 525 रुपए एकत्र कर उन्हें दिए थे। डालटनगंज में वे मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय भी गए थे। गांधी जी ने कतरास और झरिया का भी दौरा किया था। 1934: देवघर में बापू की कार पर हुआ था हमला।

1934 में जब गांधीजी दूसरी दफा देवघर पहुंचे, तो उनकी कार पर जसीडीह में हमला किया गया था। हमले में गांधी जी को चोट तो नहीं लगी, वे बाल-बाल बच गए थे। छोटानागपुर के इस दौरे में वे गोमिया, कतरास, झरिया समेत कई स्थानों पर गए थे।

29 अप्रैल 1934 को भी गांधी जी रांची आए थे। 3 मई को उन्होंने हरिजन इंडस्ट्रियल स्कूल की स्थापना की और निवारण आश्रम की भी नींव रखी थी। 2-3 मई को सविनय अवज्ञा आंदोलन के बारे में रांची के नेताओं से विचार-विमर्श कर 4 मई को ओडिशा रवाना हो गए।

पत्रकार,

बड़कागांव, हजारीबाग

870 9463 497

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