शास्त्रों में पूजा करने के क्या हैं नियम, जानिए घर में पूजा कैसे करनी चाहिए

नियमित रूप से पूजा, साधना और मंत्रों के जाप से व्यक्ति का मन और शरीर दोनों ही स्वस्थ रहता है.  इसी कारण से घर में मंदिर बनाने और पूजा-करने की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है. आइए जानते हैं घर के मंदिर में पूजा करने के कुछ नियम…

सनातन धर्म में हर एक घर में नियमित रूप से भगवान की पूजा-पाठ करने का विधान होता है. रोज सुबह- शाम के समय नियमित रूप से पूजा-पाठ करने पर घर में सकारात्मकता का वास होता है. इसके अलावा नियमित रूप से पूजा पाठ करने पर देवी–  देवताओं की विशेष कृपा बनी रहती है और मन में अच्छे विचार आते हैं. नियमित रूप से पूजा,  साधना और मंत्रों के जाप से व्यक्ति का मन और शरीर दोनों ही स्वस्थ रहता है. इसी कारण से घर में मंदिर बनाने और पूजा-करने की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है. आइए जानते हैं घर के मंदिर में पूजा करने के कुछ नियम…

– सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार घर में मंदिर का स्थान और दिशा हमेशा ईशान कोण में ही होना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार उत्तर- पूर्व की दिशा में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. ऐसे में पूजा स्थल का द्वार पूर्व दिशा में होना चाहिए. घर में पूजा करने वाले लोगों का मुंह पश्चिम दिशा की ओर रहना बहुत शुभ होता है. वहीं इसके अलावा पूजा करने वाले लोग का मुंह अगर पूर्व दिशा में हो तो भी इसे अच्छा और शुभ माना जाता है.

– घर में पूजा स्थल के लिए उस स्थान का चुनाव करना बढ़िया होता है जहां पर दिनभर या फिर कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी आती हो. भगवान के मंदिर में सूरज की रोशनी पड़ने से सकारात्मक ऊर्जा ज्यादा आती है.

– घर में बने पूजा स्थल में पूजा से संबंधित तमाम तरह की सामग्री पूजा स्थल के पास ही होनी चाहिए.  इसे अन्य दूसरी जगह नहीं रखना चाहिए क्योंकि अन्य स्थानों पर गंदगी या फिर अशुद्धियां रहने की संभावना ज्यादा रहती है.

– इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जहां पर पूजा स्थल हो उसके आसपास शौचालय न बना हो.  वास्तु शास्त्र के अनुसार इसे घर में दोष पैदा होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है.

– कई लोग अपने पूर्वजों और परिजनों की फोटो को पूजा स्थल पर रख देते हैं. ऐसा करना अशुभ होता है.  शास्त्रों में पूर्वजों की तस्वीरों को लगाने के लिए दक्षिण की दिशा सबसे शुभ दिशा मानी गई है. ऐसे में आपको दक्षिण की दिशा की दीवारों पर मृत परिजनों की तस्वीरलगानी चाहिए. मंदिर में इनकी फोटो को लगाने से बचना चाहिए.

– जिन घरों में पूजा स्थल बना होता है वहां पर रोजाना सुबह और शाम के समय पूजा अवश्य करनी चाहिए.  पूजा के बाद घंटी और शंख जरूर बजाएं. शास्त्रों के अनुसार पूजा के बाद घंटी और शंख बजाने से घर में फैली नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और पूरे घर में सकारात्मकता फैल जाती है.

– घर में पूजा करते समय कई बार छोटी- मोटी गलतियां हो जाती है जैसे अचानक पूजा करते समय मूर्ति नीचे गिरकर टूट जाती है तो मूर्ति खंडित हो जाती है. ऐसे में आपको क्षमा याचना मांगते हुए खंडित मूर्ति को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पाठ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं, वे नियम कुछ इस प्रकार हैं ?

  1. सूर्य, श्रीगणेश, दुर्गा, शिवजीएवं श्रीविष्णु ये पांच देव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए।  इससे धन, लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है।
  2. श्रीगणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
  3. दुर्गाजी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए।
  4. सूर्यदेवको शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
  5. तुलसीका पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,  उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते।
  6. रविवार, एकादशी, द्वादशी, पूर्णिमा, अमावस्यासंक्रान्ति तथा संध्याकाल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए।
  7. दीपकके नीचे चावल अवश्य रखने चाहिए।
  8. केतकीका फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए।
  9. कमलका फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
  10. बिल्वपत्र दस रात्रि तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
  11. तुलसीकी पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़ककर चढ़ा सकते हैं।
  12. हाथोंमें रखकर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।
  13. तांबेके पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए।
  14. दीपक-से-दीपकनहीं जलाना चाहिए जो दीपक-से-दीपक जलाते हैं, वे रोगी होते हैं।
  15. पतलाचंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए।
  16. प्रतिदिनकी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,  दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी।
  17. चर्मपात्रया प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए।
  18. स्त्रियोंको शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहाँ से चली जाती है।
  19. देवी-देवताओंका पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए। प्रात:9 से 10 बजे तक द्वितीय पूजन और आरती होनी चाहिए, मध्याह्न में तीसरा पूजन और आरती,  फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होनी चाहिए, रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती, फिर शयन करा देना चाहिए।
  20. आरतीकरने वालों को प्रथम चरणों की चार बार,  नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए।
  21. पूजाहमेशा पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें।
  22. पूजाजमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक, एक घी का और एक तेल का रखें।
  23. पूजा-अर्चनाहोने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें।
  24. पूजाघरमें मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेशजी, सरस्वतीजी,  लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
  25. श्रीगणेशजीया देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिङ्ग दो, शालिग्राम, दो सूर्य प्रतिमा,  दो गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार, काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपत्तियों का आगमन होता है।
  26. मंदिरके ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है, अपने पूज्य माता- पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
  27. विष्णुकी चार, गणेश की तीन, सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिवजी की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।
  28. प्रत्येकव्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण,  श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है।
  29. मकड़ीके जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है।
  30. घरमें झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू को लांघना,  पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं।
  31. घरमें किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें,  क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा।
  32. कपूरका एक छोटा-सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए,  जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े।
  33. घरमें नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें।
  34. घरमें नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं।
  35. सेंधानमक घर में रखने से सुख, श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होती है।
  36. रोजपीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है।
  37. साबुतधनिया, हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है।
  38. दक्षिणावर्तशंख जिस घर में होता है, उसमें साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ।
  39. घरमें यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहाँ धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पत्ते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ।
  40. एकमोती शंख, पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर, एक ताम्र सिक्का व थोड़ी-सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी।
  41. आचमनकरके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें, इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं।
  42. घरमें पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए।
  43. पूजा-पाठबिना आसन के नहीं करना चाहिए, जब पूजा करके खड़े हों तब आसन के नीचे जल की दो बूँद डालकर
     शक्राय नमः
     इन्द्राय नमः
    कहकर उन बूँदों को माथे से लगाकर फिर आसन के नीचे की भूमि को प्रणाम करके खड़ा होना चाहिए।  यदि ऐसा नहीं किया तो आपके पूजा-पाठ, जप आदि का फल देवराज इन्द्र ले जाते हैं।
  44. यदिआप शंख की पूजा करते हैं, और उसमें पानी भरना है तो कभी भी डुबाकर नहीं भरना चाहिए,  ऐसा करने से पूजा का कार्य सिद्ध नहीं होता। शंख में आचमनी द्वारा ही जल डालें। संकल्प के लिए जिस ताँबें या चाँदी की चम्मच का उपयोग किया जाता है, उसे ही आचमनी कहते हैं। शंख को कभी भी पृथ्वी पर नहीं रखना चाहिए। पूजा में यदि शंख की पूजा करते हैं, तो उसे अनाज की ढेरी पर रखना चाहिए, या किसी आसन पर स्थान दें, तभी शंख की कृपा प्राप्त होगी।
  45. प्रसादबाँटते समय धयान रखना चाहिए कि प्रसाद जमीन पर ना गिरे, यदि गिरता है,  तो उसे तुरंत उठा लें और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर रख दें। प्रसाद को जूठे हाथ से नहीं बाँटना चाहिए और न ग्रहण करना चाहिए, हाथों को धोकर ही प्रसाद वितरित करें  एवं ग्रहण करें।
  46. पूजाप्रारम्भ करने के पश्चात चाहे कैसी भी स्थिति हो, कभी भी जोर से नहीं बोले,  किसी पर क्रोध करना अथवा अपशब्द कहना पूजा को खण्डित कर देता है।
  47. फूल-फलचन्दन आदि को कभी भी सूँघना नहीं चाहिए, यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपको पूजा करते हुए भी पाप लगेगा।  क्योंकि सूँघने वाली कोई भी वस्तु देवी-देवताओं पर नहीं चढ़ती। बासी फूल भगवान पर नहीं चढ़ते, यदि वे माली के घर रखें हैं, तो दोष नहीं लगता। विल्बपत्र चढ़ाने से एक दिन पहले तोड़कर रखने चाहिए।
  48. फूलोंको कभी तोड़कर नहीं चढ़ाना चाहिए। कुछ लोग एक फूल के बहुत-से टुकड़े करके चढ़ाते हैं, ऐसा भूलकर भी नहीं करें।  यदि ऐसा किया तो पूजा में दोष लगेगा।
  49. जपकरनेवाली माला को बिना गोमुखी के खुले में जप नहीं करना चाहिए। यदि बिना गोमुखी के जप होगा तो उसका फल भूत- प्रेतों को प्राप्त होगा।

प्रातः उठते समय इन पुण्यश्लोक पात्रों के नाम अवश्य लेने चाहिए।

प्रातःस्मरणीय पात्र
  दोहा

।।1।।
पाणि मध्य बस सरस्वती,
करतल पंकज जात।
अग्रभाग कर इन्दिरा,
इनका दर्शन प्रात।।

।।2।।
अश्वत्थामा व्यास बलि,
कृपाचार्य हनुमान।
परशुराम अरु विभीषण,
ये चिरजीव महान।।

।।3।।
शकुन्तला सुत भरत पृथु,
सहस्रार्जुन नल राम।
पूर्ण दिवस जाता भला,
जो लेता ये नाम।।

।।4।।
कुन्ती तारा द्रौपदी,
पचकन्या प्रख्यात।
अहल्या अरु मन्दोदरी,
सुमिरत नित अघ जात।।

।।5।।
कश्यप, गौतम, अत्रि अरु,
विश्वामित्र, वशिष्ठ।
भरद्वाज, अरु जमदग्नि,
ये ऋषि सात वरिष्ठ।।

                    ।।6।।

कराग्रे वसते लक्ष्मीः

करमध्ये सरस्वती ।

करमूले तु गोविन्दः

प्रभाते करदर्शनम ॥

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