जमशेदपुर : सांसद विधुत वरण महतो ने मंगलवार लोकसभा में एयरपोर्ट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि उनके संसदीय क्षेत्र जमशेदपुर टाटा जो औद्योगिक घराने के नाम से मशहूर है। साथ ही यहां टाटा जैसे बड़े उद्यमी स्थापित हैं। एमएसएमई का एक बड़ा सेक्टर भी आदित्यपुर में है और एमएसएमई एवं ऑटोमोबाइल सेक्टर में छोटे-बड़े उद्योगों को मिलाकर लगभग दो हजार उद्योग स्थापित हैं। यहां माइंस का बहुत बड़ा क्षेत्र भी है। इसलिए केंद्र सरकार ने यहां धालभूमगढ़ एयरपोर्ट के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की थी। वहीं एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इसके लिए लगभग सौ करोड़ रुपए भी आवंटित किए है। उक्त एयरपोर्ट की स्वीकृति के बाद जनवरी 2019 में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं पूर्व राज्यमंत्री नागरिक उड्डयन मंत्रालय, भारत सरकार जयंत सिन्हा द्वारा भूमि पूजन कर शिलान्यास भी किया गया था। मगर दुर्भाग्य कि बात है कि उक्त एयरपोर्ट का अब तक वन विभाग द्वारा एनओसी न मिलने के कारण काम शुरू नहीं हो सका है। उक्त मामले को उन्होंने 7 फरवरी 2023 को लोकसभा में नियम 377 के तहत मुद्दा भी उठाया था। जिसका जवाब राज्यमंत्री नागरिक उड्डयन मंत्रालय भारत सरकार जनरल डॉ वीके सिंह का पत्र के माध्यम से दिनांक 28 फरवरी 2023 प्राप्त हुआ है। उक्त पत्र में कहा गया है कि पर्यावरण मूल्यांकन समिति ने देखा कि प्रस्तावित स्थल जंगलों में पड़ता है और जो बड़ी संख्या में हाथियों का निवास स्थान है। यह स्थल हाथी गलियारे के रूप में जाना जाता है। जिसके बाद 25 सितंबर 2020 की बैठक में यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रस्तावित स्थल हवाई अड्डे के विकास के लिए उपयुक्त नहीं है और समिति वर्तमान स्थल चयन से सहमत नहीं थी। जिसके तहत परियोजना के प्रस्ताव को एक वैकल्पिक स्थल का पता लगाने के लिए कहा गया है।वहीं सांसद ने कहा कि उक्त जवाब से मुझे घोर निराशा हुई है। क्योंकि स्थानीय लोगों का कहना है कि आज तक एक भी हाथी को यहां के लोगों ने देखा नहीं है तो हाथियों का गलियारा कहां से हो जाएगा। अब पता नहीं कौन सी चयन समिति है और वह स्थल निरीक्षण करने कब गई। इसका भी स्थानीय सांसद होने के नाते उन्हें जानकारी नहीं मिली। बताते चलें कि द्वितीय विश्वयुद्ध सन 1942 के समय भी उक्त स्थान पर यह एयरपोर्ट था और उस समय तो घना जंगल भी था। मगर आज तो कुछ भी वैसा नहीं है। पूर्व में उक्त स्थान पर वन विभाग के सीसीएफ तीन डीएफओ ने कहा था कि कोई दिक्कत नहीं है और उस वक्त एयरपोर्ट अथॉरिटी के पदाधिकारी भी वहां उपस्थित थे। उक्त स्थान के 500 मीटर की दूरी पर एनएच और 100 मीटर की दूरी पर रेलवे लाइन है। पूर्व में वन विभाग एवं एयरपोर्ट अथॉरिटी के लोग कम से कम 10 बार उक्त स्थल का निरीक्षण करने के बाद कहा था कि जंगली बांसो का झुंड है और जिसे हटा लिया जाएगा। राज्य सरकार ने केन्द्रीय सरकार के उस आदेश को निरस्त करते हुए यह स्पष्ट किया की यहां किसी प्रकार का एलीफैंट कोरिडोर कभी था ही नहीं। राज्य सरकार ने यह आदेश भी जारी किया है कि इससे उपयुक्त जगह कहीं नहीं हो सकता। मगर इतना स्पष्ट होने के बावजूद उनके समझ से यह परे है कि अब तक राज्य सरकार भारत सरकार से फारेस्ट क्लीयरेंस सर्टिफिकेट की मांग क्यों नहीं कर रही है। जबकि नगरिक उड्डयन मंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि वन अनापत्ति प्रमाण पत्र मिलते ही एअरपोर्ट निर्माण का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। अंत में सांसद विधुत वरण महतो ने कहा कि आपके माध्यम से वे केंद्र सरकार से अनुरोध करना चाहते हैं कि राज्य सरकार से वार्ता कर वन भूमि का अनापत्ति प्रमाण निर्गत कराते हुए धालभूमगढ़ एयरपोर्ट निर्माण के कार्य को प्रारंभ किया जाय। ताकि यहां एयरपोर्ट बनने से केवल झारखण्ड ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के खड़गपुर, मिदनापुर, झाड़ग्राम, पुरुलिया और ओडिशा के बारिपदा, मयूरभंज और बालेश्वर भी जमशेदपुर जैसे बड़े शहर से जुड़ सके।
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