एक वर्ष से अपनी मांगों को लेकर धरना पर बैठे किसान को कोई नहीं लिया सुध

सिमारिया: सिमरिया निज प्रतिनिधि सिमरिया प्रखंड के इचाक खुर्द के ग्रामीण शिवपुर कठौतिया रेल लाइन में अधिगृहित गैरमजरूआ खास जमीन के और उस पर बने मकान के मुआवजा को लेकर पिछले 23 मई से धरना पर बैठे हैं। इस बीच प्रखंड प्रशासन और अनुमंडल प्रशासन द्वारा बैठक कर समस्या का समाधान अति शीघ्र करने का आश्वासन दिया गया। परंतु आज तक इस पर कोई कारगर पहल नहीं किया गया। जन प्रतिनिधियो ने भी किसानो के दुख दर्द को नही समझे।जिसके कारण आज भी प्रभावित किसान किसी मसीहा और प्रशासन के उच्च अधिकारियों के शुद्ध लेने की आस मे धरना पर बैठे हैं। प्रभावित प्राय किसान का एकमात्र आय का साधन कृषि है। कृषि योग भूमि के अधिग्रहण के बाद मुआवजा नहीं मिलने से किसान की आय बढने की जगह मजदूर बन जाएंगे। कई प्रभावित ऐसे किसान है जिन्हें दूसरे जगह घर बनाने की जमीन भी नहीं बचा है। इन्हें पलायन करना होगा या किराए की कमरे में सिमटना होगा। प्रभावितो ने बताया की रेलवे ने इरकॉन कंपनी को टेंडर दिये हुए है। कंपनी के लोग बिना स्थल पर आये टेबुल पर बैठे बैठे सर्वे कार्य कर दिये। जिसके कारण रैयती या गैरमजरूआ खास जमीन पर बने किसी भी मकान, कुंआ, पेड आदि का अधिग्रहण किया ही नही गया। इसके अलावे बहुत से किसानो के नाम आदि मे गलती कर उलझा दिया गया है। इस बाबत तत्कालीन सीओ और एसडीओ ने स्थल का जांच कर रैयत हीत मे न्यायोचित फैसला देने का आश्वासन दिया गया। परंतु एन वक्त पर दोनों के तबादले के बाद जाच के बाद ज्यो का त्यो रुका हुआ है। सरकार प्रभावित परिवार के दुख दर्द को समझकर कोई कारगर कदम उठाने का काम करे।

 

भाकपा दे रही समर्थन

इस महा धरना में एकमात्र भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन मिल रहा है। जबकि सभी दलों से इस लड़ाई को अपने मुकाम तक पहुंचाने के लिए आग्रह किया गया था। स्थानीय सांसद मंत्री और विधायक ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। गांव के लोग जन प्रतिनिधियों से नाराज है परंतु देश हित में वोट करने के लिए तैयार भी।

 

सिमरिया विधानसभा के चार प्रखंड के लगभग 100 किसान प्रभावित है।

सिमरिया विधानसभा के टंडवा, सिमरिया, पत्थलगड़ा और गिधौर प्रखंड के लगभग एक दर्जन से अधिक गांव शामिल है ।सभी गांव में गैर मजरूवा खास भूदान और बंदोबस्त जमीन के मालिक को कोई मुआवजा नहीं दिया जा रहा है ।जबकि 1988 में सरकार द्वारा भूमिहीनों के बीच भूदान से जमीन दिया गया था ।इस जमीन पर कड़ी मेहनत के बाद खेती लायक बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। परंतु अधिग्रहण के बाद अब एक बार फिर किसान मजदूर बन जाएंगे।

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