ढ़ाई माह से लिफ्ट और तीन सालों से सीटी स्कैन मशीन भी है खराब
– किचन के कर्मचारियों को हाथ में मिल रहा है नगद वेतन, सालों से निदेशालय में पड़ा है आवंटन के करोड़ों रुपए
जमशेदपुर : कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम का हमेशा से हाल बेहाल रहा है। जिसका प्रभाव दूर दराज से आने वाले मरीजों और उनके परिजनों पर भी पड़ता है। इस अस्पताल पर ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ही आश्रित है और जिनके पास इलाज के लिए पैसे भी नहीं होते। बावजूद इसके अस्पताल के रख-रखाव में लापरवाही बरती जा रही है। मगर अस्पताल प्रबंधन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
एक सप्ताह से एक्स-रे मशीन है खराब :-
बीते एक सप्ताह से एमजीएम अस्पताल का बड़ा एक्स-रे मशीन खराब है। जिसके कारण छोटे एक्स-रे मशीन पर मरीजों को निर्भर रहना पड़ रहा है। वहां भी छोटे मोटे एक्स-रे ही होते हैं। जिससे मरीज को बाहर के मशीनों पर पैसे खर्च कर एक्स-रे करवाना पड़ रहा है। मगर अब तक इसे ठीक करने की पहल नहीं की गई है।
ढ़ाई माह से कोरोना बिल्डिंग की लिफ्ट भी है खराब :-
इसी तरह बीते ढ़ाई माह से एमजीएम अस्पताल कोरोना बिल्डिंग की लिफ्ट भी खराब है। जिसके कारण मरीजों को रैंप के जरिए वार्ड तक ले जाया जा रहा है। सिर्फ यही नहीं खाना देने वाले कर्मचारियों को भी इससे भारी परेशानी हो रही है। कुछ दिनों तक तो कर्मचारी रैंप से ही धकेलकर खाने की गाड़ी ऊपर ले जाकर दिया करते थे। मगर अब वे भी मरीजों को नीचे बुलाकर ही खाना दे रहे हैं। जिससे परिजन मरीज को छोड़कर नीचे खाना लेने आने के लिए मजबूर हैं। इस बिल्डिंग में बर्न और पीडीया जैसे जरूरी विभाग चल रहे हैं।
तीन सालों से सीटी स्कैन मशीन भी है खराब :-
वहीं बीते तीन सालों से अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन भी खराब है। जिसके लिए कई बार टेंडर भी निकाला गया। मगर किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। जिसका सीधा फायदा प्राइवेट कंपनी मणिपाल को मिला और उसने पीपीपी मोड पर अस्पताल में सीटी स्कैन मशीन को बैठा दिया। जिससे आज वह रोजाना हजारों रुपए भी कमा रहा है। और तो और इसका उद्घाटन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने अपने कर कमलों से ही किया था।
किचन के कर्मचारियों को मिल रहा हाथों में नगद वेतन :-
सिर्फ यही नहीं, विगत अक्टूबर 2021 से एमजीएम अस्पताल में किचन का टेंडर लिए जेना इंटरप्राइजेज ठेका कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को हाथों में नगद वेतन भी दिया जा रहा है। साथ ही कर्मचारियों के ऑनलाइन एप गूगल पे और फोन पे पर भी वेतन का भुगतान किया जा रहा है। पीएफ और ईएसआई भी नहीं दिया जा रहा है। वहीं श्रम कानूनों के नियमों को ताक पर रखकर कर्मचारियों को कम वेतन भी दिया जा रहा है। एक सरकारी अस्पताल में सरकारी नियमों की ही धज्जियां उड़ाई जा रही है। मगर इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं है। ना ही अस्पताल प्रबंधन इसपर संज्ञान लेना जरूरी समझता है और ना ही अस्पताल के प्रशासनिक अधिकारी।
सालों से निदेशालय में पड़े है आवंटन के करोड़ों रुपए :-
विगत तीन सालों से निदेशालय में एमजीएम अस्पताल के नाम पर लगभग 13 से 14 करोड़ रुपए आवंटन के पड़े हुए हैं। जिससे मशीनों और फर्नीचर की खरीदारी करनी है। साथ ही आउटसोर्स कर्मचारी और होमगार्ड जवानों का बकाया वेतन भी इसी से देना है। मगर अब तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि करोड़ों रुपए का आवंटन निदेशालय में बेकार पड़े हुए हैं। अगर इनका उपयोग सही समय पर किया जाता तो आज अस्पताल का अपना सबकुछ होता।
क्या कहा अस्पताल अधीक्षक ने :-
इस सभी मामलों पर अस्पताल अधीक्षक डॉ रविंद्र कुमार ने कहा कि जो एक्स-रे मशीन खराब थी उसे बना लिया गया है। ऊर्जा विभाग से भी बात हुई है और बहुत जल्द लिफ्ट भी बन जाएगा। जहां तक किचन के कर्मचारियों को नगद वेतन देने की बात है तो हम ठेका कंपनी को पैसा दे देते हैं। उसके बाद वो अपना वेतन देता है। उसे बैंक खाते में वेतन देने के लिए भी बोला गया है। वहीं सीटी स्कैन मशीन पर उन्होंने कहा कि टेंडर निकालने पर भी कोई सामने नहीं आ रहा। इसका कारण क्या है मुझे नहीं पता। जबकि आवंटन पर उन्होंने कहा कि यह सरकार का पैसा है और जब वे इसे भेजेंगे तब ही काम होगा। कई बार अस्पताल की तरफ से स्वास्थ्य विभाग को पत्राचार भी किया गया है। मगर अब तक पैसा नहीं मिला। जब मिलेगा तब देखेंगे।