जहां-जहां शिव के आंसू गिरे वहां रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए – कथावाचक

 

मानगो वसुन्धरा एस्टेट में शिव महापुराण कथा का पहला दिन

 

जमशेदपुर : मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा स्टेट (नियर इरीगेशन कॉलोनी) में श्री शिव महापुराण कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ के पहले दिन गुरूवार को वृन्दावन से पधारे स्वामी बृजनंदन शास्त्री महाराज ने व्यास पीठ से शिव महापुराण, शोभायात्रा, महात्म, रूद्राक्ष, भस्म महिमा वर्णन के प्रसंग का सुंदर व्याख्यान किया। कथा के दौरान प्रसंग के आधार पर कलाकारों ने जीवंत झांकी भी प्रस्तुत की। इस दौरान उन्होंने शिव कथा के विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि भस्म, रुद्राक्ष धारण करके नमः शिवाय मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य को देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं। देवता पास में दौड़ आते हैं। उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं। विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब भगवान शिव ने मानव जाति के कष्ट और पुनर्जन्म के चक्र को देखा तो उनका हृदय करुणा से भर गया। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और जहां-जहां ये आंसू गिरे, वहां रुद्राक्ष वृक्ष उत्पन्न हुए। शिवजी सदैव मृगचर्म (हिरण की खाल) धारण किए रहते हैं और शरीर पर भस्म (राख) लगाए रहते हैं। शिवजी का प्रमुख वस्त्र भस्म यानी राख है। क्योंकि उनका पूरा शरीर भस्म से ढंका रहता है। शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है, एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जानी है। कथावाचक ने बताया कि शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है और उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है।

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