कोडरमा: कोई भी सरकार नीति बनाती है। जनता का भला हो, रोज़गार मिले। लेकिन पूर्ववर्ती राज्य सरकार के जनविरोधी आदेश ने हजारो परिवार का भला छोड़िये, उनके समक्ष रोजी रोटी का संकट पैदा कर दिया। इससे आम गरीब जनता दहशत में है। उन्हें अपने और अपने परिवारों के भविष्य अंधकारमय होते दिखने लगा है। ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी से ही आशा बंधती है कि कोडरमा में उजड़ते रोजगार को लचीला रुख अपना कर रोजगारों को पुर्नजीवित किया जाय। उक्त बातें कांग्रेस नेता सईद नसीम ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा।
उन्होंने कहा कि बताते चले वर्ष 2010 में कोडरमा के तत्कालीन उपायुक्त शिवशंकर तिवारी के कार्यकाल में माइका के छोटे स्क्रैप ढिबरा को एवं इसके कारोबार पर सबसे ज्यादा प्रतिबंध लगा। तब यहां के व्यवसायियों का शिष्टमंडल कई बार सरकार के मंत्रियों से मिलने गए, लेकिन पर्यावरण की दुहाई देकर इसे पूरी तरह अनसुना कर दिया गया था। माइका पर आधारित उद्योग मिटको सरकारी उदासीनता के कारण 2002 से बंद पड़ा है। वर्ष 2003 में बाबूलाल मरांडी की सरकार के दौरान जेएसएमडीसी द्वारा संचालित माइका खदान बंदरचुआ, पेसरा यूसी, सुग्गी, खलखथंबी और गम्हारो को बंद कर दिया गया। वर्तमान में सभी दल के लोग माइका उद्योग की बदहाली, जंगलों से ढिबरा चुननेवालों पर पुलिस एवं वन विभाग की रोक के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं। लेकिन दिलचस्प बात है कि ज़ब भाजपा और उसके गठबंधन के लोग सरकार में थे तब कभी उन्हें इस मुद्दे की याद नहीं आयी। आज भी कोडरमा में सांसद और विधायक भाजपा से ही है और इन जनमुद्दे पर पूर्व की तरह चुप है।
झारखंड में भाजपा तो ज्यादा सरकार में रही और हमेशा जनता की भावना से खिलवाड़ करती आ रही है। पहले क्रेशर उधोग पर पाबंदी लगा उसे उजाड़ा गया अब माइका उद्योग का अस्तित्व दिनों दिन मिटता जा रहा है और इससे जुड़े इकाई एक के बाद एक बंद होते जा रहे हैं। वर्तमान झारखण्ड सरकार को गरीब मजदूरों की चिंता होनी चाहिए। राज्य सरकार से निवेदन होगा कि वन कानूनों में आवश्यक संसोधन करने की दिशा में पहल करे या फिर ग्रामीणों को पहले रोजगार की स्थाई व्यवस्था करे। सईद नसीम ने कहा कि ढिबरा का लोग उत्खनन नहीं करते हैं, बल्कि इसे बंद खदानों के बाहर जमा किए गए ढेर से चुनकर लाते हैं, सरकार रोजगार के अवसर नहीं पैदा करेंगे, अगर गरीब जनता कचड़ा में कुछ चुनकर अगर अपनी जिंदगी अगर बसर करती है तो वो भी सरकार को नागवार गुज़र रही है।