कहा शराब घोटाले में सीबीआई जांच की आंच मुख्यमंत्री तक ना पहुंचे इसलिए एसीबी को किया आगे
जमशेदपुर : पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया प्रखंड में फर्जी तरीके से जन्म प्रमाण पत्र बनाना अपने आप में अत्यंत चिंताजनक विषय है। हम सभी लोग शहरों की जनसंख्या वृद्धि को समझ सकते हैं। जहां अस्पताल और रोजगार के अवसर होते हैं, वहां लोग आकर बसते हैं और उसी आधार पर जन्म प्रमाण पत्र बनते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और जिससे किसी को आपत्ति नहीं होती है। लेकिन यदि चाकुलिया जैसे ग्रामीण और अपेक्षाकृत पिछड़े क्षेत्र में अचानक बड़ी संख्या में जन्म प्रमाण पत्र बन रहे हैं और जो यह दर्शाता है कि इसके पीछे कोई बड़ा सुनियोजित प्रयास है। यह प्रशासनिक चूक से कहीं अधिक राजनीतिक या रणनीतिक योजना का संकेत देता है। इसके साथ ही चाकुलिया बालीजुड़ी पंचायत जो आदिवासी बहुल क्षेत्र है। जहां संथाल और मुंडा समुदाय का वर्चस्व है, वहां मुस्लिम समुदाय की महिला को मैया सम्मान योजना की राशि दी गई। जबकि इस पंचायत में एक भी मुस्लिम परिवार है ही नहीं। उक्त बातें भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सह नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने गुरुवार जमशेदपुर के बिस्टुपुर सर्किट हाउस स्थित परिसदन में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कही। इस दौरान भाजपा प्रदेश मंत्री नंदजी प्रसाद, जमशेदपुर महानगर अध्यक्ष सुधांशु ओझा और जिला मीडिया प्रभारी प्रेम झा भी उपस्थित रहे। वार्ता में बाबूलाल मरांडी ने बताया कि ऐसे मामलों में मनरेगा और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ भी वही लोग उठा रहे हैं, जो वास्तव में उस गांव या पंचायत के निवासी नहीं हैं। बल्कि फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से योजना का लाभ ले रहे हैं। इससे साफ़ झलकता है कि यह अपने आप में एक गंभीर विषय है, जिसे प्रशासन को गंभीरता से लेना चाहिए।उन्होंने भारत की जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 1951 में आदिवासी आबादी 35.38 प्रतिशत, दलित आबादी 8.41, ईसाई आबादी 4.12, मुस्लिम आबादी 8.9 और सनातनी (हिंदू सहित) आबादी 87.79 प्रतिशत थी। 1991 में आदिवासियों की आबादी घटकर 26.36 प्रतिशत, दलितों की आबादी अन्य जातियों के साथ बढ़कर 11.84, ईसाई आबादी 4.6, मुस्लिम आबादी 13.85 और सनातनी आबादी घटकर 82.9 प्रतिशत रह गई। जबकि 2011 की जनगणना में आदिवासी आबादी और घटकर 26.20 प्रतिशत , दलित आबादी 12.80, ईसाई आबादी 4.30, मुस्लिम आबादी 14.53 और सनातनी (हिंदू सहित) आबादी 81.17 प्रतिशत पर सिमट गई है। यह बदलाव प्राकृतिक नहीं बल्कि एक योजनाबद्ध प्रयास है। विशेषकर झारखंड में, जहां एक धर्म विशेष की आबादी को बढ़ाने का कार्य फर्जी जन्म प्रमाण पत्रों और अवैध घुसपैठ के जरिए किया जा रहा है। उन्होंने चिंता जताई कि बांग्लादेश जैसे देशों से लोग मालदा, मुर्शिदाबाद आते हैं। फिर वहां से झारखंड राज्य में अवैध तरीके से घुसपैठ कर रहे हैं। पहले यह पूर्वोत्तर में दिखा और अब झारखंड जैसे राज्यों में जनसांख्यिकीय संतुलन को बिगाड़ रहा है। आगे उन्होंने कहा कि पहलगाम घटना के बाद भारत सरकार ने सभी राज्यों को पत्र भेजकर निर्देशित किया कि वे प्रत्येक जिले में एक समिति गठित करें। जो बांग्लादेशी और रोहिंग्या जैसे अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया सुनिश्चित करें। लेकिन दुर्भाग्यवश झारखंड सरकार इस दिशा में अब तक कोई ठोस कदम उठाती नहीं दिख रही है और जो गंभीर चिंता का विषय है। इसके उलट फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ऐसे लोगों को आधार कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र और सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। उदाहरण के लिए, साहेबगंज, राजमहल, उदवा जैसे इलाक़ों में बांग्लादेशी घुसपैठियों को दस्तावेज जारी किए गए हैं। जिससे साफ जाहिर होता है कि यह राज्य को एक धर्मशाला बना देने की सुनियोजित साजिश चल रही है।उन्होंने कहा कि राज्य में हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद भ्रष्टाचार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। बिना प्रशासनिक मिलीभगत के इस प्रकार की लूट संभव नहीं है। आईएएस विनय चौबे की गिरफ्तारी भी इसी व्यापक भ्रष्टाचार का हिस्सा है। जिसकी शुरुआत 2022 में तब हुई जब शराब दुकानों के ठेकों को लेकर मनमाफिक कंपनियों को अनुचित लाभ दिया गया। 19 अप्रैल 2022 को मैंने स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि घोटाले की संभावना है। लेकिन उस चेतावनी को नजरांदाज कर सरकार ने अपने मनमाफिक चार कंपनियों को ठेके दिये। फिर 2024 में शराब घोटाले की गूंज छत्तीसगढ़ में सुनाई दी और 27 सितंबर 2024 को वहां मीडिया में खुलासे के बाद एसीबी ने झारखंड में अक्टूबर में एफआईआर दर्ज की। छत्तीसगढ़ सरकार ने सीबीआई को जांच सौंपी। जिससे स्पष्ट है कि जांच की कड़ी झारखंड तक जाएगी और झारखंड के मुख्यमंत्री की संलिप्तता भी उजागर होगी। इसी डर से सीबीआई की जांच से पहले ही एसीबी के माध्यम से विनय चौबे को गिरफ़्तार करा दिया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि एसीबी के डीजी फिलहाल वही अधिकारी हैं, जिनका डीजीपी कार्यकाल 30 अप्रैल को समाप्त हो चुका है और अब झारखंड में न तो स्थायी डीजीपी हैं, न ही वैध एसीबी के डीजी। यह स्थिति स्वयं में गंभीर और असंवैधानिक है। तीन वर्षों तक कोई कार्रवाई न करने के बाद अब अचानक की गई गिरफ़्तारी केवल जांच से बचाव का तरीका प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि ईडी की जांच में दो सीओ गवाह बने थे तो झारखंड सरकार ने उनके घर छापेमारी कर डराने का प्रयास किया। ताकि गवाहों को चुप कराया जा सके। यह सब भ्रष्टाचार को छिपाने और सीबीआई की जांच से बचने के प्रयास हैं। नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम की बदहाली पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि इन मामलों में उच्च स्तरीय न्यायिक समिति का गठन कर पूरे मामले की गहराई से जांच कर दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए और राष्ट्रहित में अविलंब निर्णय लिया जाय।