कल्पना की उड़ान

ख्वाहिशों का दौर, चल रहा था जब
जवां धड़कनों में खूब हलचल थी तब

आशिकी जैसी , मंजिलों का सफर
रंगी महकी चंचल सांसें चलती थी तब

नैनों में ग़ज़ल , कुछ गीतों से श्रृंगार
सतरंगी सपने पलकों पे , बुनते थे तब

मनचली तितलियों के संग आसमां पे
स्वतंत्र ख्यालों में ,उड़ान भरती थी तब

कला से महज़ , सितारे करिश्मा नहीं
गले में आकार पांव भी थिरकते थे तब

हवा कुछ ऐसी चली उड़ा ले गया शहर
सुनामी के सोने में, जागी पल थी तब

आयी कहकशां से ,कोरोना में करुणा
फिर ख्वाबों में कल्पना , उतरी थी तब

स्वरचित मौलिक
करुणा सिंह कल्पना

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