विधायक सरयू राय मिले राज्यपाल से, गर्वनर मांगेंगे सरकार से स्पष्टीकरण
जमशेदपुर : शहर को औद्योगिक नगरी घोषित करने के सरकार द्वारा आपाधापी में किए गए निर्णय के विषय में पूर्वी के विधायक सरयू राय ने गुरुवार राज्यपाल से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने राज्यपाल को स्मार पत्र भी सौंपा। साथ ही उन्होंने राज्यपाल का ध्यान कई बिन्दुओं की ओर आकृष्ट किया। जिन्हें सुनकर राज्यपाल ने कहा कि इस बारे में सरकार से स्पष्टीकरण मांगेंगे और यदि कुछ भी नियम तथा जनहित के विरूद्ध हुआ तो उसपर कार्रवाई करने का आवश्यक निर्देश भी देंगे। वहीं जारी स्मार पत्र में विधायक सरयू राय ने कहा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद – 243 (क्यू) का हवाला देते हुए राज्यपाल को बताया कि किसी भी शहर को पूर्णतः या आंशिक रूप से औद्योगिक नगरी घोषित करने के लिए संविधान ने राज्यपाल को अधिकृत किया है। यदि कोई निजी या सरकारी संस्थान किसी शहर में पूर्णतः या अंशतः नागरिक सुविधाएं देना चाहती है तो उस इलाके के क्षेत्रफल को देखते हुए राज्यपाल उसे औद्योगिक नगरी घोषित कर सकते हैं। परन्तु झारखण्ड सरकार ने राज्यपाल को विश्वास में लेना तो दूर, उन्हें सूचित किए बिना ही मंत्रिपरिषद से जमशेदपुर में औद्योगिक नगर समिति गठित करने का निर्णय ले लिया। और तो और इस संबंध में अधिसूचना भी प्रकाशित कर दिया और जो संविधान के अनुच्छेद-243क्यू के विरूद्ध है। उन्होंने राज्यपाल को बताया कि जब विधानसभा का सत्र आहूत हो जाता है अथवा सत्र आरंभ हो जाता है तो उस अवधि में यदि सरकार कोई नीतिगत निर्णय लेती है तो उस निर्णय से विधानसभा को अवगत कराना सरकार के लिए बाध्यकारी है। जमशेदपुर को औद्योगिक नगरी घोषित करने का झारखण्ड सरकार के मंत्रिपरिषद का निर्णय विधानसभा का वर्तमान शीतकालीन सत्र आरंभ होने के बीच में किया गया। मगर सरकार ने इसे सदन पटल पर नहीं रखा। जिसको लेकर हमने सदन को सूचित भी किया। बावजूद इसके सरकार ने कैबिनेट का यह निर्णय सदन में नहीं रखा। यह सरकार के असंवैधानिक आचरण को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। उनके अनुसार मंत्रिपरिषद के निर्णय और उसकी अधिसूचना में सरकार ने कहा है कि जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति के 16 वार्डों को औद्योगिक नगरी में शामिल किया जाएगा। साथ ही यह भी कहा है कि जो बस्तियां टाटा लीज क्षेत्र से बाहर है, उनमें सुविधाएं देने के लिए ‘राईट ऑफ वे’ का शुल्क भी लिया जाएगा। यह सरकार द्वारा 2005 में टाटा-लीज नवीकरण समझौता के प्रावधान के विपरीत है। इस समझौता में टाटा स्टील ने स्वीकार किया है कि वह जमशेदपुर के सभी नागरिकों को सुविधाएं उपलब्ध कराएगी और उनसे उतना ही शुल्क वसूलेगी, जितना शुल्क राज्य सरकार की नगरपालिका वसूलती है। इसका कोई जिक्र जमशेदपुर औद्योगिक नगरी घोषित करने के मंत्रिपरिषद के प्रस्ताव में नहीं किया गया है। बकौल सरयू राय मंत्रिपरिषद द्वारा पारित और अधिसूचित जमशेदपुर औद्योगिक नगर समिति में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि जिन बस्तियों से शुल्क लिया जाएगा, उन्हें स्थानीय मालिकाना हक दिया जाएगा या नहीं। उन्होंने राज्यपाल से अनुरोध किया कि ऐसी बस्तियों को मालिकाना हक दिलाने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दें। इसके साथ ही जमशेदपुर औद्योगिक नगर समिति में जमशेदपुर के 16 वार्डों को शामिल काने का उल्लेख भी किया है। राज्य सरकार के स्थानीय मंत्री अथवा जिला के प्रभारी मंत्री को समिति का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। टाटा स्टील के उपाध्यक्ष और जिले के उपायुक्त को इसका उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया है। इसमें टाटा स्टील के 11 और झारखण्ड सरकार के छह प्रतिनिधि शामिल हैं। वहीं स्थानीय विधायक को भी समिति में रखा गया है। टाटा कामगार यूनियन और टाटा मोटर्स को भी इसमें रखा गया है। मगर शहर के जो 16 वार्ड उस समिति में शामिल किए गए हैं, उनके प्रतिनिधि को कोई स्थान इस समिति में नहीं दिया गया है। यह तो नगरपालिका के स्वशासन और संविधान की अवधारणा के सख्त खिलाफ है। सरकार का यह निर्णय भी संविधान विरोधी और जनता को उसके मौलिक अधिकार से वंचित करने वाली है। वहीं विधायक सरयू राय के स्मार पत्र के अनुसार उन्होंने राज्यपाल को यह भी बताया कि औद्योगिक नगर समिति के लिए वित्तीय संसाधन जिन स्रोतों से आएगा, उसमें टाटा स्टील के योगदान की कोई चर्चा नहीं की गई है। इस अधिसूचना में अंकित है कि जमशेदपुर औद्योगिक नगर समिति झारखण्ड नगरपालिका अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार काम करेगी। जब राज्यपाल किसी शहर को पूर्णतः या अंशतः औद्योगिक नगर घोषित करेंगे तो संविधान कहता है कि वहां नगरपालिका नहीं बनेगी। इस औद्योगिक नगर समिति के संबंध में 2005 से 2016 के बीच कई अधिसूचनाओं के साथ साथ इसपर हुए झारखण्ड उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का आधा-अधूरा उल्लेख भी किया गया है। इसमें यह उल्लेख किया ही नहीं गया है कि 1989 में जमशेदपुर को नगर निगम बनाने के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का जो निर्णय हुआ था, उसे सरकार लागू क्यों नहीं करा सकी। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के सामने सरकार और टाटा स्टील ने इस मामले को न्यायालय से बाहर सुलझाने का शपथ पत्र दिया। परन्तु जवाहर लाल शर्मा का आवेदन इस विषय में अब भी सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई की प्रक्रिया में है। उसके बारे में इस अधिसूचना में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।