जब अक्ल बाँटने लगे विधाता

अक्ल बाँटने लगे विधाता,
लम्बी लगी कतारी ।
सभी आदमी खड़े हुए थे,
कहीं नहीं थी नारी ।।

सभी नारियाँ कहाँ रह गयीं,
था ये अचरज भारी ।
पता चला ब्यूटी पार्लर में,
पहुँच गयीं थीं सारी ।।

मेकअप की थी गहन प्रक्रिया,
एक एक पर भारी ।
बैठी थीं कुछ इन्तजार में,
कब आयेगी बारी ।।

उधर विधाता ने पुरूषों में,
अक्ल बाँट दी सारी ।
पार्लर से फुर्सत पा कर के,
जब पहुँची सब नारी ।।

बोर्ड लगा था स्टॉक ख़त्म है,
नहीं अक्ल अब बाकी ।
रोने लगी सभी महिलाएँ,
नीन्द खुली ब्रह्मा की ।।

पूछा कैसा शोर हो रहा,
ब्रह्मलोक के द्वारे ?
पता चला कि स्टॉक अक्ल का
पुरुष ले गये सारे ।।

ब्रह्मा जी ने कहा देवियों,
बहुत देर कर दी है ।
जितनी भी थी अक्ल सभी वो,
पुरुषों में भर दी है ।।

लगी चीखने महिलाएँ,
ये कैसा न्याय तुम्हारा ?
कुछ भी करो, चाहिए हमको
आधा भाग हमारा ।।

पुरुषों में शारीरिक बल है,
हम ठहरी अबलाएँ ।
अक्ल हमारे लिए जरुरी,
निज रक्षा कर पाएँ ।।

बहुत सोच दाढ़ी सहला कर,
तब बोले ब्रह्मा जी ।
इक वरदान तुम्हे देता हूँ,
हो जाओ अब राजी ।।

थोड़ी सी भी हँसी तुम्हारी,
रहे पुरुष पर भारी ।
कितना भी वह अक्लमन्द हो,
अक्ल जायेगी मारी ।।

एक बोली, क्या नहीं जानते !
स्त्री कैसी होती है ?
हँसने से ज्यादा महिलाएँ,
बिना बात रोती हैं ।।

ब्रह्मा बोले यही कार्य तब,
रोना भी कर देगा ।
औरत का रोना भी नर की,
बुद्धि को हर लेगा ।।

इक बोली, हमको ना रोना,
ना हँसना आता है ।
झगड़े में हैं सिद्धहस्त हम,
झगड़ा ही भाता है ।।

ब्रह्मा बोले चलो मान ली,
यह भी बात तुम्हारी ।
घर में जब भी झगड़ा होगा,
होगी विजय तुम्हारी ।।

जग में अपनी पत्नी से जब
कोई पति लड़ेगा ।
पछतायेगा, सिर ठोकेगा
आखिर वही झुकेगा ।।

ब्रह्मा बोले सुनो ध्यान से,
अन्तिम वचन हमारा ।
तीन शस्त्र अब तुम्हें दे दिये,
पूरा न्याय हमारा ।।

इन अचूक शस्त्रों में भी,
जो मानव नहीं फँसेगा ।
बड़ा विलक्षण जगतजयी
ऐसा नर दुर्लभ होगा ।।

कहे कवि सब बड़े ध्यान से,
सुन लो बात हमारी ।
बिना अक्ल के भी होती है,
नर पर भारी नारी ।।

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