सुनील बर्मन
धनबाद: भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह क्या मनोज तिवारी, रवि किशन या फिर दिनेश लाल निरहुआ का रिकॉर्ड तोड़ पाएंगे. या फिर उन्ही की राह पर चलेंगे. यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि मनोज तिवारी, रवि किशन अथवा निरहुआ किसी ने भी पहली बार में चुनाव नहीं जीता है. हालांकि आज की तारीख में तीनों भोजपुरी उद्योग के हीरो सांसद है. लेकिन जब उन लोगों ने अपना पहला चुनाव लड़ा था तो हार का मुंह देखना पड़ा था. पवन सिंह इन लोगों की ही राह चलेंगे या अलग राह बनाएंगे , इसका पता तो 4 जून को ही चलेगा. जब बिहार के काराकाट लोक सभा सीट का परिणाम सामने आएगा. मनोज तिवारी 2014 में उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से भाजपा के टिकट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को डेढ़ लाख से अधिक वोटो से हराकर सांसद बने थे. इसके बाद 2019 के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 3 लाख से भी अधिक मतों से हराकर संसद भवन पहुंचे थे. ऐसी तरह रवि किशन ने अपना पहला चुनाव 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से लड़ा था.
रवि किशन को पहली जीत 2019 में मिली
लेकिन रवि किशन को पहली जीत गोरखपुर सीट से 2019 के चुनाव में मिली जब उन्होंने सपा के उम्मीदवार को भारी अंतर से हरा दिया था. दिनेश लाल यादव निरहुआ पहली बार 2019 में आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से हार गए थे. जब 2022 में अखिलेश यादव ने विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद लोकसभा से इस्तीफा दिया तो उपचुनाव में निरहुआ ने सपा के धर्मेंद्र यादव को पराजित कर सांसद बने थे. बिहार के काराकाट लोकसभा सीट से भोजपुरी एक्टर पवन सिंह मैदान में है. हालांकि, भाजपा ने उन्हें पश्चिम बंगाल के आसनसोल से टिकट दिया था लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. वह बिहार की किसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन बात नहीं बानी. जिसके बाद काराकाट से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. पवन सिंह के सामने एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा हैं तो महा गठबंधन के राजा राम मैदान में है.
उपेंद्र कुशवाहा के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री भी किये है प्रचार
उपेंद्र कुशवाहा के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने प्रचार किया है. पवन सिंह को भोजपुरी स्टारों का साथ जरूर मिल रहा है लेकिन सवाल यह उठता है कि भोजपुरी स्टारों को पहला चुनाव हारने का “ग्रहण” लगा हुआ है. अब देखना होगा कि पवन सिंह इस ग्रहण को तोड़ पाते हैं अथवा मनोज तिवारी, रवि किशन और निरहुआ की राह पर ही चलने को किस्मत मजबूर करती है. वैसे बिहार का काराकाट सीट पवन सिंह को लेकर चर्चा में है. पवन सिंह अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है. पवन सिंह के चुनाव लड़ने से काराकाट का संघर्ष त्रिकोणीय हो गया है. एक जून को यहां वोटिंग है और 4 जून को परिणाम सामने आएंगे.
काराकाट इलाके को चावल का कटोरा भी कहा जाता है
बिहार के काराकाट इलाके को चावल का कटोरा भी कहा जाता है. यहां चावल अधिक होता है. इस इलाके के चावल की कुछ विशेषताएं भी होती है. यह लोकसभा सीट बिहार की राजधानी पटना से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर और दिल्ली से लगभग 1000 किलोमीटर की दूरी पर है. 2009 में अस्तित्व में आए इस लोकसभा क्षेत्र को चावल के लिए ही जाना जाता है. इस इलाके में लगभग 400 से अधिक राइस मील है. इसके पहले इस इलाके को बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र से जाना जाता था. भोजपुरी पवन स्टार पवन सिंह कहते हैं कि माता, बहनों, बुजुर्गों और युवाओं का समर्थन और साथ ही उनकी पूंजी है. इसके अलावे उनके पास कुछ भी नहीं है. यह अलग बात है कि पवन सिंह के चुनाव में खड़ा होने से उपेंद्र कुशवाहा की उलझने बढ़ गई है. पवन सिंह को चुनाव से बैठाने की कोशिश भी हुई, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. कारा काट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के कारण भाजपा ने पार्टी से पवन सिंह को निष्कासित कर दिया है.