कल्पना की उड़ान

ख्वाहिशों का दौर, चल रहा था जब जवां धड़कनों में खूब हलचल थी तब आशिकी जैसी , मंजिलों का सफर रंगी महकी चंचल सांसें चलती थी तब नैनों में ग़ज़ल , कुछ गीतों से श्रृंगार सतरंगी सपने पलकों पे , बुनते थे तब मनचली तितलियों के संग आसमां पे स्वतंत्र ख्यालों में ,उड़ान भरती थी तब कला से महज़ , सितारे करिश्मा नहीं गले में आकार पांव भी थिरकते थे तब हवा कुछ ऐसी चली उड़ा ले गया शहर सुनामी के सोने में, जागी पल थी तब आयी कहकशां से…

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