मौन संभालें रखिए

जीवन की पीड़ाओ को संवेदना विहीन लोगों से क्यों कहना। कर्मों से उपजे आत्मा बलों का यूं बेबस होकर रेत की तरह क्यों ढहना । जो मौन को न समझे उसे शब्दों से क्यों कहना। प्रतिकूल वक्त के बदलने तक मौन को संभाले रखिए।। जब-जब सही बात करने के बाद भी बातें बिगड़ने लगे। कटु व्यंगो की बौछार से नेत्र से खून की धारा टपकने लगे । ह्रदय चित्कार करता हो होंठ थरथराते हो। शब्दों की माला टूट कर बिखरने लगे । अपने अंतर्मन की ज्वाला को स्वयं के भीतर…

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