शीर्षक : कैक्टस कैक्टस को देखती हूँ , ना खाद ना पानी , फिर भी जीवित है , पनप जाती है, पथरीली -रेगिस्तानी, मरुभूमि में, जिजीविषा ऐसी , कोमल पत्तियाँ , और अहा !! छोटे फूल भी , उगा लेती है , अपनी सूखी , काँटेदार संरचना पर , कहाँ से लाती है , यह असीम शक्ति , धुंधले हो गए चश्मे को , उतारती हूँ , पोछती हूँ , पहनती हूँ , अरे !!यह क्या ?? यह और कोई नहीं, स्त्री है , धरतीपुत्री…
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