सरकारी स्कूलों में शिक्षा न के बराबर, केवल मध्याह्न भोजन तक सिमटा तंत्र

लगभग सभी स्कूलों में है विषयवार शिक्षकों का घोर अभाव

मो. ओबैदुल्लाह शम्सी

गिरिडीह:-सरकारी स्कूलों में शिक्षा-व्यवस्था दिन प्रतिदिन और भी अधिक चरमराती जा रही है। आज आर्थिक रूप से सक्षम लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं। उन्हें सरकारी स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था पर तनिक भी भरोसा रहा। यहां तक कि विरले ही ऐसा कोई सरकारी कर्मी होगा जिसका अपना बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता होगा। शिक्षक-छात्र अनुपात (1:40 ) अब केवल बोलने की बात रह गई है। लगभग सभी विद्यालयों में यह अनुपात वर्तमान में सौ का आंकड़ा पार कर चुका है। कहीं- कहीं तो स्थितियां और भी अधिक बदतर है। व्यवस्था भी दंग और हैरान करने वाला। कहीं 100 छात्र तो 2 शिक्षक, कहीं 300 छात्र तो 2 शिक्षक और कहीं 500 छात्र तो मात्र 4 या 5 ही शिक्षकों को नियुक्त किया गया है। समस्त जिले में शायद ही कोई ऐसा विद्यालय होगा जहां विषयवार शिक्षक उपलब्ध हैं अन्यथा प्रायः सभी स्कूलों में नियुक्त 1,2,3 या 4 शिक्षकों को ही सभी विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंप दी गई हैं।

बहुत सारे स्कूल तो एक शिक्षकीय भी हैं। स्कूलों में जब से मध्यान्ह भोजन की शुरूआत हुई है तब से पठन-पाठन नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है और स्कूलों में राजनैतिक घुसपैठ भी हुआ है। स्कूलों में कार्यरत शिक्षक विद्यालय के आरंभ होते ही कार्यालय के कार्य एवं मध्यान्ह भोजन का प्रबंधन में लग जाते हैं। भोजन का प्रबंध करते एवं खाते-पिलाते कब छुट्टी का समय हो जाता है यह पता भी नहीं चलता है।
लगभग 25-30 वर्ष पूर्व जब स्कूलों में मध्यान्ह भोजन नहीं था तब शिक्षकों को बच्चों के पठन-पाठन के लिए भरपूर समय मिलता था परिणामस्वरूप तत्कालीन सरकारी स्कूलों की शिक्षा-व्यवस्था और शिक्षा का स्तर काफी ऊंचा था। आज ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सरकारी विद्यालयों में सब कुछ है पर शिक्षा नहीं! सरकार अपने स्तर से हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन धरातल पर इसका तनिक भी परिणाम नहीं दिख रहा है। सरकार एवं सरकारी तंत्र को स्कूलों के वर्तमान चरमराई हुई स्थिति एवं व्यवस्था पर गंभीर होने की आवश्यकता है।

Related posts