विलुप्त होते गिद्ध को संरक्षण की है आवश्यकता

संजय सागर

बड़कागांव : बड़कागांव तथा आसपास के क्षेत्र में गिद्ध विलुप्त के कगार पर हैं . सुप्रसिद्ध पक्षीविद डॉक्टर सालिम अली ने अपनी पुस्तक ‘इंडियन बर्ड्स’ में गिद्धों का वर्णन सफाई की एक कुदरती मशीन के रूप में किया है. गिद्धों का एक समूह एक मृत सांड को मात्र 30 मिनट में साफ कर सकता है. अगर गिद्ध हमारी प्रकृति का हिस्सा न होते तो हमारी धरती हड्डियों और सड़े मांस का ढेर बन जाती. गिद्ध मृत शरीरों का भक्षण कर हमें कई तरह की बीमारियों से बचाते हैं.
मॉडर्न पब्लिक स्कूल के प्राचार्य मोहम्मद इब्राहिम का कहना है कि पहले की तरह अब गिद्ध हमेशा नहीं दिखाई देते हैं. छिट पुट ही गिद्ध दिखाई देते हैं.
पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में गिद्धों की अहंम भूमिका रही है, लेकिन आज इनकी प्रजाति लगभग विलुप्त हो रही है. इनके विलुप्त होने का मुख्य कारण लगातार हो रहे अंधाधुंध रसायनों का प्रयोग व प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग माना जा रहा है. गिद्धों के विलुप्त होने से ही आज पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि यह गिद्ध मृतक पशुओं को खाकर पर्यावरण संरक्षण में सहायक सिद्ध होते थे. आज से करीब 25 वर्ष पूर्व तक गिद्धों की भारी संख्या होती थी, जो धरती पर मर चुके पशु या जानवरों को खाकर पर्यावरण की रक्षा के लिए दुर्गध को फैलाने से रोकने में मदद करते थे. जब भी कोई जानवर या पशु मरता था तो उसका कारण कोई बीमारी होती थी, जो मरने के बाद वातारण में फैलकर हवा के द्वारा दूर-दूर तक मानव को प्रभावित कर सकती थी. गिद्ध उनके शरीर को सड़ने से पहले ही खा जाते थे, जिससे वातावरण बीमारी रहित रहता था .लेकिन आज वातावरण काफी गंदा हो चुका है. कृषि के लिए उपयोग में लाए जाने वाले रसायन भी इनकी विलुप्त होने के कारण माने जाते हैं.पर्यावरणविदों के अनुसार इनके विलुप्त होने का मुख्य कारण पशुओं को बुखार होने पर लगाया जाने वाला टीका डाइक्लोफिनैक सोडियम है, जिसका असर पशु के मरने के बाद तक भी रहता है.पशु चिकित्सक इस टीके को बुखार, सूजन और दर्द की स्थिति में लगाते हैं. इस टीके का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. इसके प्रयोग से पशु तो ठीक हो जाता है, लेकिन पशु के मरने के बाद गिद्धों द्वारा खाया गया पशु मांस उनके विलुप्त होने का कारण बन जाता है.हालांकि सरकार ने इस टीके पर प्रतिबंध लगाया हुआ है. आसमान में इक्का-दुक्का जगह पर ही कभी-कभार गिद्ध दिखाई देते हैं. जो समय के साथ विलुप्त होते जा रहे हैं, लेकिन जब तक हम प्राकृतिक स्त्रोतों का सदुपयोग नहीं करते तब तक गिद्ध जैसे पर्यावरणीय सहायक पक्षियों को नहीं बचा सकते. हजारीबाग के सहायक वन संरक्षक ए. के . परमार का कहना है कि हजारीबाग में गिद्धों को संरक्षण करने का कार्य वन विभाग द्वारा हमेशा किया जाता है. ग्रामीण भी इन्हें संरक्षित करें.

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