बड़कागांव के विधायक कामाख्या नारायण सिंह की राजनीति में तूती बोलती थी

बिहार विधानसभा के विपक्ष नेता थे

 

संजय सागर

बड़कागांव : बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र के प्रथम विधायक कामाख्या नारायण सिंह का संयुक्त बिहार में राजनीतिक क्षेत्र में तूती बोलती थी. इसीलिए झारखंड के नए विधानसभा में कामाख्या नारायण सिंह की तस्वीर लगी हुई है. कामाख्या नारायण सिंह 1951 से लेकर 57 तक बड़कागांव का विधायक थे. उन्होंने नई पार्टी बनाकर बड़कागांव का विधानसभा सीट छोड़कर अपनी मां शशांक मंजरी को विधानसभा चुनाव लड़वाए था. उनकी मां 1957 से 1962 तक विधायक थी. कामाख्या नारायण सिंह का राज क्षेत्र बड़कागांव, केरेडारी , टंडवा, पतरातु, रामगढ़, हजारीबाग, इचाक, पदमा आदि क्षेत्र तक फैला हुआ था. जब इनका जनाधार बढ़ने लगा तो, इन्होंने अपनी नई पार्टी संथाल परगना जनता पार्टी का गठन किया था. उनकी पार्टी को विधानसभा चुनाव में अपार सफलता मिली थी.कामाख्या नारायण सिंह ने 1952, 1957, 1962 और 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी. 1962 के विधानसभा चुनाव में तो उनकी पार्टी के 7 सांसद और 50 विधायक हो गये थे. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के कारण उन्हें बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा भी मिला. जबकि बिहार में 1967 से 68 तक पहली बार विपक्ष की सरकार राजा रामगढ़ के सहयोग से ही बन पायी थी. उनकी पार्टी से ही उनके परिवार के ही भाई कुंवर बसंत नारायण सिंह, माता शशांक मंजरी देवी, धर्मपत्नी ललिता राजलक्ष्मी, पुत्र टिकैत इंद्र जितेंद्र नारायण सिंह कई बार लोकसभा सदस्य और विधायक बने थे.

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का कैंप करना रहता था बेअसर राजा बहादुर कामाख्या नारायण सिंह, कुंवर बसंत नारायण सिंह, ललिता राजलक्ष्मी बिहार सरकार में मंत्री बने. उनके सहयोग से ही कैलाशपति सिंह बड़कागांव का विधायक बने थे .क्योंकि उन्होंने बड़कागांव विधानसभा सीट छोड़कर कैलाशपति सिंह को चुनाव लाडवाए थे. श्री सिंह के सहयोग से ही कैलाशपति सिंह 1969 में विधायक बने थे. इन्हीं के सहयोग से और गोपीनाथ सिंह (रंका-पलामू) बिहार सरकार में मंत्री बन गये थे. पुराने हजारीबाग जिले (यानी चतरा, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो और रामगढ़) में तो जिस किसी को भी इन्होंने चुनाव खड़ा किया, वे जीतते रहे. आजादी के पूर्व और पश्चात जिस समय कांग्रेस की तूती बोलती थी, उनके दिग्गज नेता राजाबहादुर कामाख्या नारायण सिंह के विरुद्ध कैम्प करते, फिर भी ये चुनाव जीत जाते थे. उनका प्रभाव इतना था कि उनकी पार्टी के उम्मीदवार धनबाद सहित आरा-छपरा से भी चुनाव जीतते थे.

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