जमशेदपुर : अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद द्वारा गोलमुरी स्थित शहीद स्मारक में सोमवार भारत-चीन सीमा पर 1962 के युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा देने वाले वीर बलिदानियों की शहादत को नमन किया गया। रेजांगला की लड़ाई पूरे विश्व की 8 सबसे भयानक लड़ाइयों में से एक है। हमें गर्व है कि हमारे पूर्वज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे। इस पोस्ट की सुरक्षा की जिम्मेदारी कुमाऊं रेजीमेंट की एक कंपनी को दी गई थी। जिसका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह (भाटी) कर रहे थे। 123 जवानों की इस कंपनी में अधिकतर हरियाणा रेवाड़ी इलाके के अहीर (यादव) शामिल थे। चीनी सेना की बुरी नजर चुशुल पर लगी हुई थी और वो किसी भी हालत में इसे अपने कब्जे में करना चाहते थे। जिसको लेकर चीनी सैनिकों ने भी इस इलाके में डेरा डाल लिया था। इसी क्रम में अक्टूबर 1962 में जब लद्दाख से लेकर नेफा (अरुणाचल प्रदेश) तक भारतीय सैनिकों के पांव उखड़ गए थे और चीनी सेना भारत की सीमा में घुस आई थी, तब रेज़ांग-ला में ही एक मात्र ऐसी लड़ाई लड़ी गई थी, जहां भारतीय सैनिक चीन के पीएलए पर भारी पड़ी थी। वहीं संस्थापक वरुण कुमार ने बताया कि अठारह फीट की ऊंचाई पर माइनस 40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर हुई इस बर्फीली जंग में 114 जवान शहीद हुए थे। इनमें एक परमवीर चक्र, आठ वीर चक्र के अलावा अन्य अलंकरण युद्ध के शौर्य, पराक्रम और बलि शामिल थे। इस अवसर पर परमहंस यादव ने रेजांगला युद्ध की चर्चा करते हुए कहा कि 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी ने मेजर शैतान सिंह (परमवीर चक्र विजेता) के नेतृत्व में केवल 3 जेसीओ एवं 120 जवानों ने 1300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था। ‘अंतिम सैनिक अंतिम गोली’ की उक्ति को चरितार्थ करते हुए 114 जांबाज मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। साथ ही परिषद के अध्यक्ष विनय कुमार यादव ने शहीदों को नमन करते हुए कहा कि रेजांगला युद्ध में जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया था। उनकी शौर्य गाथा स्कूली बच्चों को बताई जानी चाहिए। मौके पर विनय कुमार यादव, वरुण कुमार, परमहंस यादव, सत्येंद्र कुमार सिंह, प्रवीण कुमार पांडे, सुखविंदर सिंह, मुन्ना चौबे, राकेश कुमार, जसवीर सिंह समेत अन्य भी मौजूद थे।